________________
प्र.1542 'सिद्ध' शब्द की व्याख्या कीजिए ।
"सिद्धे निट्टिए सयलपओणजाऐ ऐसेसिमिति सिद्धाः ।" परिपूर्ण हो गये है जिनके सकल प्रयोजनों के समूह, वे सिद्ध कहलाते
"सितं-बद्धमष्टप्रकारं कर्मेन्धनं ध्यातं-दग्धं जाज्वल्यमान शुक्लध्यानानलेन यैस्ते सिद्धाः ।" जाज्वल्यमान ऐसे शुक्ल ध्यान द्वारा जिन्होंने कर्मरूपी ईन्धन को नष्ट कर दिया है, वे सिद्ध है। "सेन्धन्तिस्म अपुनरावृत्या निवृत्तिपुरीमगच्छत् ।” । जहाँ से वापस नही लौट सकते है, ऐसी निवृत्ति पुरी में जो सदा के लिए गये है, वे सिद्ध है। "निरूवमसुखाणि सिद्धाणि ऐसि ति सिद्धाः ।" जिनका निरूपम सुख सिद्ध हो चुका है, वे सिद्ध है। .. "अट्ठपयारकम्मक्खऐण सिद्धिसद्दाय ऐसिं ति सिद्धाः ।" अष्ट प्रकार के कर्मों के क्षय से सिद्धि को प्राप्त करने वाले सिद्ध कहलाते है। "सियं-बद्ध कम्मं झायं भसमीभूयऐसिमिति सिद्धाः ।" सित अर्थात् बद्ध यानि जिनके पूर्व बद्धित समस्त कर्म भस्मीभूत हो गये है, वे सिद्ध है। "सिध्यन्तिस्म-निष्ठितार्था भवन्तिस्म ।" जिनके समस्त कर्म अब निष्ठित अर्थात् संपन्न हो गये है, वे सिद्ध है। "सेधन्ते स्म-शासितारोऽभवन् माङ्गलरूपतां वाऽनुभवन्ति स्मेति सिद्धा।" जो आत्मानुशासक है तथा मांगल्यरूप का अनुभव करते है,वे सिद्ध है।
438
परिशिष्ट
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org