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________________ केवलज्ञानियों के पीछे क्रमशः मन:पर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चौदहपूर्वी साधु भगवंत बैठते है । तत्पश्चात् अतिशय वाले साधु भगवंत दीक्षा पर्याय की अपेक्षा से समस्त अग्रजों को नमन करके बैठते है । तत्पश्चात् वैमानिक देवियाँ पूर्ववत् नमनादि करके खड़े-खड़े ही परमात्मा की देशना का श्रवण करती है। तत्पश्चात् तीसरी पर्षदा-साध्वीजी भगवंत ज्येष्ठानुक्रम से वंदनादि करके खड़े-खड़े ही परमात्मा की अमृतमयी वाणी का रसपान करती है। दक्षिण द्वार से प्रवेश करके भवनपति देवियाँ, व्यंतर देवियाँ और ज्योतिष देवियाँ नामक तीन पर्षदा परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा देकर, पूर्ववत् वहाँ विराजित पर्षदा को नमन करके नैऋत्य कोण में बैठती है। भवनपति देव, व्यंतर देव और ज्योतिष देव नामकं तीन पर्षदा पश्चिम द्वार से प्रवेश करके परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा देकर नमनादि करके अहोभाव से भरकर वायव्य कोण में बैठकर परमात्मा की करूणामयी वाणी का पान करती है। इन्द्र सहित वैमानिक देव, मनुष्य (पुरुष और स्त्री) नामक तीन पर्षदा उत्तर द्वार से प्रवेश करके परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा देकर नमनादि करके ज्येष्ठानुक्रम से ईशान कोण में बैठकर परमात्मा की वात्सल्यमयी वाणी का रसास्वादन करते है। इस प्रकार के बारह पर्षदा परमात्मा की प्रदक्षिणा देकर, अरिहंत भगवन्त, गणधरादि को नमस्कार करके उपर कथित प्रमाणानुसार विदिशाओं में बैठती है। 392 परिशिष्ट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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