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2. पृथ्वीकाय में भी परमात्मा का जीव चिंतामणि रत्न, पद्मरागरत्न आदि उत्तम प्रकार की जाति में उत्पन्न होता है। 3. अप्काय में तीर्थंकर परमात्मा का जीव तीर्थोदक (तीर्थजल) रूप में उत्पन्न होता है। 4. तेउकाय में मंगलदीपक आदि में उत्पन्न होता है। . 5. वायुकाय में तीर्थंकर परमात्मा का जीव मलयाचल पर्वत पर बसंत ऋतु की मृदु, शीतल और सुगंधी बयार रूप में उत्पन्न होता है। 6. वनस्पतिकाय में उत्तम प्रकार के चंदन वृक्ष, कल्प वृक्ष, पारिजात, आम्र, चंपक, अशोक आदि वृक्षों में अथवा चित्रावेल, द्राक्षावेल, नागवेल आदि औषधि में उत्पन्न होता है। 7. बेइन्द्रिय में दक्षिणावर्त शंख, शुक्तिका, शालिग्राम आदि में उत्पन्न होता है। 8. पंचेन्द्रिय तिर्यंच में तीर्थंकर परमात्मा का जीव हाथी अथवा उत्तम लक्षण वाला अश्व बनता है। 9. तीर्थंकर नामकर्म निकाचित (उपार्जित) करने के पश्चात् अनुत्तर
विमान में उत्पन्न होते है। षट्पुरूषचरित्र, अरिहंतना अतिशय पे. 33 प्र.1403 अद्भुत रूप के धनी के नाम बढ़ते क्रम में लिखें ।
सामान्य राजा < महामंडलिक राजा < बलदेव < वासुदेव < चक्रवर्ती < अनुतर वैमानिक देव < आहारक शरीरधारी < गणधर भगवंत <
तीर्थंकर परमात्मा। लोक प्रकाश काललोक सर्ग 30 गाथा 908 प्र.1404 इन्द्रध्वज के माध्यम से इन्द्र क्या सूचित करता है ? उ. जगत में तीर्थंकर परमात्मा ही एक स्वामी है । इसे सूचित करने के
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. परिशिष्ट
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