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________________ नय, निक्षेप प्रधान दृष्टि की जरुरत है उस दृष्टि का उद्घाटन जिसके द्वारा होता है, उसे अनुयोग द्वार कहते है। शासन रुपी महानगर में अपने इच्छित तत्त्वज्ञान को खोजने और पाने के लिए प्रवेश का जो द्वार है उसका नाम अनुयोग द्वार है । प्र.96 आगम कितने प्रकार के होते है ? उ. दो प्रकार - 1. लौकिक आगम 2. लोकोत्तर आगम । प्र.97 लौकिक आगम किसे कहते है ? उ. जो शास्त्र व्यवहार जगत को चलाने में सहाय्यभूत होते है, वे लौकिक आगम कहलाते है। प्र.98 लोकोत्तर आगम किसे कहते है ? .. उ.. जो शास्त्र आत्म शुद्धि में सहायक बनते है, वे लोकोत्तर आगम कहलाते है। प्र.99 लोकोत्तर आगम के प्रकार बताते हुए नाम लिखिये? उ. तीन प्रकार - अनुयोग द्वार के अनुसार - 1. सुत्तागम 2. अत्थागम . 3. तदुभयागम । अन्य अपेक्षा से - 1. आत्मागम 2. अनन्तरागम 3. परम्परागम । प्र.100 कौनसे आगम गणधरों के लिए आत्मागम होते है ? उ. तीर्थंकर परमात्मा के अर्थागम (आत्मागम) के आधार पर गणधर भगवंत जिन सूत्रों की रचना करते है, वे सूत्रात्मक आगम (सूत्रागम) गणधर भगवंत के लिए आत्मागम है। प्र.101 आत्मागम किसे कहते है ? उ. गुरू आदि के उपदेश के बिना अपने आप ही आत्मा में अर्थ ज्ञान प्रकट होना अर्थात् स्वयं बोध होना, आत्मागम है। जैसे- तीर्थंकर परमात्मा अर्थ रुप आगम का जो उपदेश देते है, वह अर्थात्मक आगम, तीर्थंकर चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 25 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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