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________________ परिशिष्ट प्र.1354 समवसरण की भूमि को काटे, घास, कंकरादि से रहित एवं शुद्ध कौन से देव करते है ? उ.. वायुकुमार देवता । प्र.1355 समवरण की भूमि पर सुगंधित जल की वृष्टि कौन करते है ? उ. मेघकुमार देवता । प्र.1356 पांच वर्गों के पुष्पों से उस भूमि की पूजा कौन से देव करते है ? उ. उस ऋतु के अधिष्ठायक देव । प्र.1357 जल प्रमाण सुगंधित पुष्पों की वृष्टि कौन से देव करते है ? उ. व्यंतर देव । प्र.1358 प्रथम गढ की रचना कौन से देव कौन से धातु से करते है ? उ. भवनपति देव रजतमय धातु से प्रथम गढ़ की रचना करते है, जिनके स्वर्ण के कंगुरे होते है। प्र.1359 द्वितीय गढ़ (प्राकार) की रचना कौन से देवता करते है ? । उ. रत्नमय कंगुरे वाले स्वर्ण जडित द्वितीय प्राकार की रचना ज्योतिष्क देव करते है। . . .प्र.1360 तीसरे गढ़ की रचना कौन से देवता किससे करते है ? उ. वैमानिक देव रत्नों से तीसरे गढ़ की रचना करते है, जिसके कंगुरे मणियों के होते है। प्र.1361 समवसरण की प्रत्येक दिशा में कितने द्वार होते है ? उ. समवसरण में तीन गढ़ होते है और प्रत्येक गढ़ की चारों दिशाओं में एक-एक द्वार होता है। इस प्रकार कुल बारह (3 x 4) द्वार होते है। ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी al 377 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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