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________________ योग करना, अनुयोग है। आचार्य जिनभद्रगणि के अनुसार - अणु ओयण मणुओगो सुयस्स नियएण जमभिहेएण अर्थात् श्रुत के नियत अभिधेय को समझने के लिए उसके साथ उपयुक्त अर्थ का योग करना, अनुयोग है। प्र.1250 प्रस्थापन से क्या तात्पर्य है ? उ. स्वाध्याय प्रारंभ का एक अनुष्ठान विशेष । प्र.1251 प्रतिक्रमण से क्या तात्पर्य है ? उ. प्रतिक्रमण अर्थात् स्वाध्याय-प्रतिक्रमण हेतु अनुष्ठान । प्र.1252 चेष्टा कायोत्सर्ग कितने उच्छ्वास का किया जाता है ? .. उ. तत्र चेष्टाकायोत्सर्गऽष्ट-पंचविंशति-सप्तविंशति, त्रिशत, पञ्चशत अष्टोत्तर सहस्रोच्छ्वासान् यावद् भवति । अर्थात् विभिन्न स्थितियों में 8, 25, 27, 300, 500 और 1008 उच्छवास का कायोत्सर्ग किया जाता है। प्र.1253 अभिभव कायोत्सर्ग का जघन्य व उत्कृष्ट काल कितना है ? उ. 'अभिभव कायोत्सर्गस्तु मुहूर्तादारभ्य संवत्सरं याबद्' अर्थात् जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट 1 वर्ष है। योगशास्त्र 3, पत्र 250 प्र.1254 बाहुबलिजी ने कौनसा कायोत्सर्ग कितने काल तक किया है ? उ. बाहुबलिजी ने अभिभव कायोत्सर्ग 1 वर्ष तक किया । योगशास्त्र 3, पत्र 250 प्र.1255 प्रतिक्रमण से सम्बन्धित कायोत्सर्ग के प्रमाण बताइये ? 25 श्वासोश्वास यानि 1 लोगस्स चंदेसु निम्मलयरा तक का कायोत्सर्ग। 27 श्वासोश्वास यानि 1 लोगस्स सागर वर गंभीरा तक का कायोत्सर्ग। उ. 334 इक्कवीसवाँ कायोत्सर्ग प्रमाण द्वार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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