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________________ प्र. 1187 छिंदन के प्रकारों को परिभाषित कीजिए ? छिंदन के दो प्रकार 1. आत्मकृत 2. परकृत । 1. आत्मकृत- अपने ही अंग परिवर्तन से जो आड होती है अर्थात् अपने शारीरिक अंगादि का बीच में चलना, 'आत्मकृत छिंदन' है । 2. परकृत - मार्जारी ( बिल्ली) आदि अन्य प्राणी का बीच में होकर अर्थात् स्थापनाचार्यादि मुख्य स्थापना व आराधक के बीच में होकर निकलने से जो आड होती है, वह 'परकृत छिंदन' है ' । प्र.1188 अन्नत्थ सूत्र में कथित आगारों को वर्गीकृत कीजिए ? क्रमांक आगार विभाग 1. उ. 314 2. 3. 4. एकार्थक शब्द छिन्दन - खण्डन करना, क्रियानुष्ठान में विक्षेप करना । अंतराणि - व्यवधान करना । अग्गलि - अर्गलि बंद करना, विघ्न आगमन का संकेत करना, ये तीनों ही शब्द एकार्थक सुचक है । 5. आगार का नाम ऊससिएणं, नीससिएणं खासिएणं, छिएणं, जंभाइएणं . उड्डुएणं, वाय- निसग्गेणं- भमलिए पित्त मुच्छाए आगार सुहुमेहिं अंग-संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल नियम भावी ( नियोगज) संचालेहिं सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहि आगार एवमाइएहिं (अगणि, छिदिज्ज, बोहिय, बाह्य निमित्त आगार खोभाइ, डक्को) Jain Education International सहज अंगार आगंतुक अल्पनिमित्तक आगार आगंतुक बहु निमित्तक For Personal & Private Use Only उन्नीसवाँ आगार द्वार www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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