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________________ का विधान किया है। आगार रहित प्रतिज्ञा से मन में प्रतिपल प्रतिज्ञा भंग का भय बना रहता है, जिससे सम्यक रुप से पालन करना कठिन और अशक्य हो जाएगा। इस अशक्यता के निवारणार्थ आगारों की प्ररुपणा की गई है, ताकि अविधि का दोष भी न लगे व सम्यक् विधि से कायोत्सर्ग की क्रिया भी कर सकें। प्र.1172 अग्नि, चोर, राजा, सर्पादि के भय से स्थान का त्याग करना क्या कायरता नहीं हैं ? . उ. नहीं, मात्र समाधि का संरक्षण हैं । ये सभी भय असमाधि के कारक (जनक) हैं । ऐसी असमाधि अवस्था में मृत्यु होती हैं, तो जीव की गति बिगड जाती हैं । इसलिए समाधि बनाये रखने के लिए अपवाद मार्ग (आगार) की प्ररुपणा की गई है। प्र.1173 अभग्न और अविराधित में क्या अंतर है ? उ.. सम्पूर्ण नष्ट हो जाना, भग्न कहलाता है, जैसे मटके के टुकडे होने पर मटका भग्न कहलाता है । कुछ अंश में टुटने पर विराधित कहलाता है। कायोत्सर्ग सम्पूर्ण टूटे नही, तब वह अभग्न और अंशतः भी न टूटने पर अविराधित कहलाता है। प्र.1174 संक्षेप से आगारों को कितने भागों में विभाजित किया जा .. . सकता है? उ. सोलह आगारों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है -1. सहज आगार 2. आगन्तुक आगार 3. नियोगज आगार 4. बाह्य निमित्त आगार । प्र.1175 सहज आगार कौन से है ? चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 311 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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