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________________ 'शृणाति हिनस्तीति शल्यम्' शल्य का अर्थ है पीडा देने वाली वस्तु । अर्थात् जो आत्म प्रगति में बाधक बनता है, वह शल्य कहलाता है । 'शल्यतेऽनेनेति शल्यम्' जो हर पल शालता है आत्मा को दुखी:, पीडित करता है, अन्तर में खटकता रहता है, वह शल्य कहलाता है। प्र.1110 शल्य कितने प्रकार के होते है ? दो प्रकार - 1. द्रव्य शल्य 2. भाव शल्य । उ. प्र.1111 द्रव्य शल्य के प्रकार बताते हुए उसे परिभाषित कीजिए ? मिथ्यादर्शन, माया और निदान नामक तीन शल्यों की जिनसे उत्पत्ति होती है, उन कारणभूत कर्म को द्रव्य शल्य कहते है । द्रव्य शल्य के तीन प्रकार है - सचित्त शल्य 2. अचित्त शल्य 3. मिश्र शल्य । 1. सचित्त शल्य - दासादिक सचित्त द्रव्य शल्य है । 2. अचित्त शल्य - सुवर्ण आदि अचित्त द्रव्य शल्य है । 3. मिश्र शल्य ग्रामादिक मिश्र शल्य है 1 उ. उ. प्र. 1112 भाव शल्य को परिभाषित करते हुए इसके प्रकारों के नाम बताइये ? उ. - द्रव्य शल्य के उदय से जीव के मायां, निदान व मिथ्या रुप परिणाम होते है, वे भाव शल्य कहलाते है । भाव शल्य तीन प्रकार के होते है1. दर्शन 2. ज्ञान 3. चारित्र और योग । प्र. 1113 शंका- कांक्षा आदि किसके शल्य है ? 294 उ. शंका-कांक्षा आदि सम्यग् दर्शन के शल्य है । प्र. 1114 सम्यग् ज्ञान के शल्य कौन से है ? उ. अकाल में पढना, अविनय करना, बिना योगोपधान के पढना, ज्ञान व Jain Education International For Personal & Private Use Only +++ अट्ठारहवाँ हेतु द्वार www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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