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________________ है। प्र.1103 "विसोहीकरणेणं' का कायोत्सर्ग क्यों किया जाता है ? उ. आत्म परिणामों की विशेष शुद्धि हेतु कायोत्सर्ग किया जाता है । प्र.1104 विशोधिकरण किसे कहते है ? उ. प्रायश्चित्त करने के पश्चात् आत्मा को विशुद्ध बनाना, विशोधिकरण कहलाता है। प्र.1105 विशुद्धि के प्रकार बताते हुए नामोल्लेख कीजिए ? उ. विशुद्धि दो प्रकार की होती है - द्रव्य विशुद्धि 2. भाव विशुद्धि । __1. द्रव्य विशुद्धि - साबुन आदि खार पदार्थ के संयोग से होने वाली - वस्त्र आदि की शुद्धि, द्रव्य शुद्धि कहलाती है। ___ 2. भाव विशुद्ध - निन्दा व गर्दा के द्वारा आत्मा की जो शुद्धि की जाती है, उसे भाव विशुद्धि कहते है। प्र.1106 निन्दा व गर्दा में क्या अंतर है ? उ. आत्मसाक्षी से पाप की आलोचना करना, निंदा कहलाता है, जबकि गुरू की साक्षी (गुरू के समक्ष) में पापों की आलोचना (निंदा) करना, गर्दा कहलाता है। प्र.1107 'विसल्लीकरण' से क्या तात्पर्य है ? । 3. आत्मा के भीतर जो पाप कर्म छुपे है वे काटें की भाँति चुभते है, उन पाप रुपी काँटों को बाहर निकालना, विसल्लीकरण कहलाता है। प्र.1108 आत्म विशुद्धि किसके अभाव में होती है ? उ. आत्म विशुद्धि शल्य के अभाव में होती है। • प्र.1109 शल्य से क्या तात्पर्य है ? +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 293 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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