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________________ पीछे हटना, प्रतिक्रमण है। तस्स मिच्छामि से प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त किया जाता है । प्र.1075 विवेक प्रायश्चित्त कब किया जाता है ? उ. उपयोग पूर्वक आहार, पानी, उपधि आदि ग्रहण करने के पश्चात् ज्ञात होता है कि यह अनैषणीय (अकल्पनीय ) है । तब ऐसी स्थिति में अनैषणीय का त्याग करना ही प्रायश्चित्त है 1 पर्वत, राह, धूंअर, धूल आदि के कारण सूर्य के आवृत्त रहने से सूर्योदय हो गया अथवा सूर्यास्त होने पर भी अस्त नहीं हुआ, ऐसा भ्रान्तिवश असमय में आहारदि ग्रहण कर लिया हो और बाद में ज्ञात हो कि यह आहार असमय में ग्रहण किया गया है, प्रथम प्रहर में गृहीत आहार चौथे प्रहर तक रखा हो, दो कोश से अधिक दूर से लाया हुआ आहारादि हो तो ऐसी स्थिति में उनका त्याग करना ही प्रायश्चित्त है । प्र.1076 अनैषणीय आहारादि कितने प्रकार से सेवन किये जाता है ? उ. अनैषणीय आहारादि (दोष युक्त आहारादि ) शठता और अशठता दो प्रकार से सेवन किया जाता है । 1. शठता - विषय, विकथा, माया और क्रीडादि वश सेवन करना । 2. अशठता - रोगी, गृहस्थ, परठने योग्य भूमि का अभाव या भयादि के कारण से सेवन करना । प्र.1077. 'कायोत्सर्ग' प्रायश्चित्त किसे कहते है ? उ. शरीर सम्बन्धित व्यापार का त्याग करना, कायोत्सर्ग है । दुःस्वप्न आदि जनित पाप को दूर करने के लिए काय - व्यापार का अमुक समय प्रमाण चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only 285 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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