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________________ पर, प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त किया जाता है। प्र.1071 मिश्र (तदुभय) प्रायश्चित्त किसे कहते है ? जिस प्रायश्चित्त में आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों करने होते है अर्थात् गुरू म. के समक्ष पापों को प्रकट करना और उसका मिच्छामि दुक्कडं देना, दोनों ही जिसमें करने होते है, उसे मिश्र प्रायश्चित्त कहते है। प्र.1072 तदुभय (मिश्र) प्रायश्चित्त के पृथक निर्देश की क्या आवश्यकता है? सभी प्रतिक्रमण नियम से आलोचना पूर्वक होते है। गुरू म० स्वयं किसी के समक्ष आलोचना प्रायश्चित्त नही करते है। इसलिए गुरू के अतिरिक्त अन्य शिष्यों की अपेक्षा से तदुभय प्रायश्चित्त का पृथक निर्देश किया . गया है। प्र.1073 मिश्र प्रायश्चित्त किन-किन दोषों के सेवन में किया जाता है ? उ. केश लोच, नख छेदन, स्वप्न दोष, शब्द रुप आदि विषयों में आसक्ति । करने (इन्द्रियों के अतिचार), रात्रि भोजन तथा पक्ष, मास व संवत्सरादि दोषों के सेवन करने पर मिश्र प्रायश्चित्त किया जाता है । प्र.1074 इरियावहिया सूत्र से कितने प्रकार का प्रायश्चित्त किया जाता है ? उ. इरियावहिया सूत्र से दो प्रकार- आलोचना व प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त किया जाता है। 1. आलोचना प्रायश्चित्त - किये हुए पाप को गुरू महाराज आदि के समक्ष प्रकट करना, आलोचना प्रायश्चित्त है । इरियावहिया से लेकर ववरोविया तक से सूत्र द्वारा आलोचना प्रायश्चित्त किया जाता है। 2. प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त - उन पापों का मिथ्या दुष्कृत देकर पापों से 284 अट्ठारहवाँ हेतु द्वार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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