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उ. निरुवसग्ग यानि मोक्ष । जन्म-मरण-रोग-शोकादि उपसर्ग (पीडा, उपद्रव)
से रहित मोक्ष सुख प्राप्ति के उद्देश्य से कायोत्सर्ग किया जाता है। प्र.1054 सम्यग्दृष्टि देवी- देवताओं को वंदन के स्थान पर स्मरण क्यों
किया जाता है? उ. वैयावृत्यादिकर सम्यग्दृष्टि देवी-देवता अविरतिधर (अव्रती) होते है
जबकि स्मरण कर्ता श्रावक, श्रमणादि विरतिधर (व्रती, व्रतधारी) होते है। व्रतधारी गुणस्थानक की अपेक्षा से देवी-देवताओं से उच्च स्थान पर होते है, इसलिए व्रतधारी के द्वारा अव्रतधारी को वंदन के स्थान
पर स्मरण किया जाता है, जो उचित है। प्र.1055 साधु व श्रावक दोनों को बोधिलाभ प्राप्त है फिर प्राप्य के
कायोत्सर्ग क्यों ? सम्यक्त्व (बोधिलाभ) प्राप्त के पश्चात् क्लिष्ट मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के उदय से क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के जाने की संभावना रहती है इसलिए विद्यमान बोधिलाभ के रक्षार्थ और इह भव और पर भव में
भी बोधिलाभ प्राप्त हो इस उद्देश्य से कायोत्सर्ग किया जाता है। प्र.1056 क्षायोपशमिक सम्यक्त्व जाना संभव है, परंतु क्षायिक सम्यक्त्व
का तो जाना असंभव है फिर यह अतिरिक्त कायोत्सर्ग क्यों ? उ. क्षायिक सम्यक्त्वी जीव को इस भव में शीघ्रातिशीघ्र मोक्ष की प्राप्ति
हो, इस हेतु से यह कायोत्सर्ग किया जाता है । प्र.1057 आठ स्तुति/चार स्तुति वाले देववंदन में प्रथम तीन कायोत्सर्ग
किस निमित्त से किये जाते है ?
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सत्रहवाँ निमित्त द्वार
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