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________________ " सुव्व (च्च) अ वइररि सिण कारवणं पि अ अणुट्ठियमिमस्स । वायगगंपेसे तहा आ गया देसणा चेव ॥" अर्थात् सुना जाता है कि प.पू. महाव्रतधारी वज्रस्वामी ने द्रव्य स्तव कराने का कार्य स्वयं ने किया है तथा पू. वाचकवर्य श्री उमास्वातिजी म. के ग्रंथों में भी इस विषय पर देशना - उपदेश भी दिये गये है । अत: साधु भगवंत को द्रव्य स्तव की क्रिया करने तथा अनुमोदन का अधिकार है, परन्तु स्वयं को करने का निषेध है । प्र. 1050 आजीवन सावद्य योग का त्याग करने वाले मुनि भगवंत द्वारा द्रव्य स्तव का उपदेश देना क्या उचित है ? उ. हाँ उचित है, क्योंकि लौकिक व्यवहार में बताया गया सावद्य योग जब लोकोत्तर ऐसे तीर्थंकर परमात्मा के पूजन स्तवन में होता है, तब वह सावद्य होने के बावजूद भी अखूट पुण्योपार्जन का हेतु होने से साधु भगवंत द्रव्य स्तव का उपदेश दे सकते है 1 प्र.1051 परमात्मा को वंदन, पूजन, सत्कारादि किस उद्देश्य से किया जाता है ? 'बोधिलाभ' अर्थात् रत्नत्रयी ( सम्यग्ज्ञान - दर्शन - चारित्र) की प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है । प्र. 1052 'बोधिलाभ' से क्या तात्पर्य है ? I जिन प्रणीत धर्म-प्राप्ति को बोधिलाभ कहते है । इहलोक व परलोक दोनों में जिन - धर्म प्राप्त हो इस उद्देश्य से 'बोहिलाभ वत्तियाए' का कायोत्सर्ग किया जाता है । प्र.1053 'बोधिलाभ' से क्या तात्पर्य है ? चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only 277 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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