SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शरीर को देखकर कहना यह आवश्यक सूत्र का ज्ञाता है। .. प्र.1011 भव्य शरीर से क्या तात्पर्य है ? जिस शरीर में रहकर आत्मा भविष्य में ज्ञान प्राप्त करने वाला होगा, वह भव्य शरीर है । जैसे - जन्म जात बच्चे को कहना यह आवश्यक सूत्र का ज्ञाता है। प्र.1012 तद्व्यतिरिक्त से क्या तात्पर्य है ? उ. वस्तु की उपकारक सामग्री में वस्तुवाची शब्द का व्यवहार किया जाता है, वह तद्व्यतिरिक्त है। जैसे-अध्यापन के समय होने वाली हस्त संकेत आदि क्रिया को अध्यापक कहना । लौकिक, प्रावचनिक एवं लोकोत्तर की अपेक्षा से यह तीन प्रकार का है। प्र.1013 आगम द्रव्य निक्षेप और नोआगम द्रव्य निक्षेप में क्या अन्तर है ? उ. आगम द्रव्य निक्षेप में उपयोग रुप ज्ञान नहीं होता, पर लब्धि रुप में ज्ञान का अस्तित्व रहता है। जबकि नोआगम में लब्धि एवं उपयोग उभय रुप से ज्ञान का अभाव रहता है। प्र.1014 नाम जिन किसे कहते है ? उ. जिनेश्वर परमात्मा के नाम ऋषभ, अजित, शांति, पार्श्व, महावीर, गौतम आदि नाम, नाम जिन है। प्र.1015 स्थापना जिन किसे कहते है ? उ. अष्ट महाप्रातिहार्यादि समृद्धि से युक्त तीर्थंकर परमात्मा एवं केवलज्ञानी जिनेश्वरों की पाषाण या धातु निर्मित प्रतिमा, स्थापना जिन कहलाती है। अर्थात् जिनेश्वर परमात्मा की प्रतिमा या चित्र; जिसमें जिनेश्वर परमात्मा की स्थापना की जाए, वह स्थापना जिन है। 266 पन्द्रहवाँ जिन द्वार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy