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________________ प्र.909 अंतिम संपदा को स्वरुप संपदा क्यों कहते है ? उ. क्योंकि कायोत्सर्ग कैसे करना है, इसका स्वरुप 'ताव कायं.... अप्पाणं वोसरामि' इन छः पदों में बताया है । कायोत्सर्गावधि में शरीर को स्थिर रखकर, मौन धारण कर, वाणी के व्यापार को सर्वथा बन्द कर, द्वारा पाप क्रिया से स्वयं को तजता हूँ । ध्यान प्र. 910 लोगस्स सूत्र (नामस्तव) की कितनी संपदा है ? की अट्ठावीस संपदा है । लोगस्स सूत्र प्र.911 लोगस्स की अट्ठावीस संपदा में कितने सर्व पद और प्रत्येक संपदा में कितने पद है ? उ. उ. A अट्ठावीस सम्पदा में अट्ठावीस सर्व पद है और प्रत्येक संपदा में एकएक पद है अर्थात् लोगस्स सूत्र की पाद तुल्य संपदा है । प्र. 912 पाद तुल्य संपदा से क्या तात्पर्य है ? उ. प्रत्येक श्लोक / गाथा के चार चरण (पद) होते है । जब प्रत्येक संपदा एक पद की होती है तब उस संपदा को पादतुल्य संपदा कहते है । जैसे • लोगस्स सूत्र गाथाए है, अत: कुल 28 (7 x 4) पद है। लोगस्स की 28 संपदा है। अत: संपदा पद तुल्य संपदा हुई अर्थात् प्रत्येक संपदा. एक पद वाली है । अर्थात् 28 पद की 28 संपदा । 238 प्र.913 चरण किसे कहते है ? उ. पाद के चौथे भाग (1/4 ) को चरण कहते है । प्र.914 श्रुतस्तव ( पुक्खरवरदी.) की कितनी संपदा है ? उ. सोलह संपदा है । Jain Education International चैत्यस्तव की संपदा For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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