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________________ उ. अभ्युपगम यानि स्वीकार करना । आलोचना प्रतिक्रमण स्वरुप प्रायश्चित्त को इच्छापूर्वक स्वीकार करने के कारण इस प्रथम संपदा को अभ्युपगम संपदा कहा गया है | प्रथम अभ्युपगम संपदा दो पद वाली एक संयुक्त संपदा है। प्र. 833 निमित्त संपदा से क्या तात्पर्य है ? उ. कौनसे कृत पापों की आलोचना करनी है, ये पाप कार्य जिसमें बताये गये है वह दूसरी निमित्त संपदा है । प्र. 834 निमित्त संपदा में किसका उल्लेख किया है ? उ. 'इरियावहियाए विराहणाए' नामक द्वितीय निमित्त संपदा में प्रतिक्रमण का निमित्त (कारण) अर्थात् ईर्यापथ सम्बन्धी क्रिया से लगे अतिचार, कृत जीव विराधना के प्रायश्चित्त स्वरुप प्रतिक्रमण कर रहा हूँ, इसका उल्लेख किया है । प्र. 835 ओघ हेतु संपदा किसे कहते है ? उ. 220 पाप कार्य का कारण (हेतु) ओघ (सामान्य) से जिस संपदा में बताया गया है, उसे ओघ हेतु संपदा कहते है । प्र. 836 ओघ हेतु सम्पदा में किसका कथन किया है ? उ. ओघ हेतु नामक तृतीय पद तुल्य संपदा में प्रतिक्रमण का सामान्य हेतु ‘गमणागमणे'का कथन किया है अर्थात् गमनागमन के दौरान जो विराधन हुई उसका प्रतिक्रमण करता हूँ । प्र. 837 विशेष हेतु संपदा किसे कहते है ? उ. पाप कार्य (विराधना) का कारण, विशेष रुप से जिस संपदा में बताय है उसे विशेष हेतु संपदा कहते है । Jain Education International For Personal & Private Use Only दसवाँ संपदा द्वार www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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