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________________ प्र.655 जीवों के भावपेक्षा से चैत्यवंदन के प्रकार बताइये ? उ. तीन प्रकार 1. जघन्य 2. मध्यम 3. उत्कृष्ट । क्रम चैत्यवंदन के अनुपर्बन्धक अविरत जीव सम्यग्दृष्टि, देश विरत, सं. प्रकार जीव सर्व विरत जीव - जघन्य मध्यम 3. उत्कृष्ट प्र. 56 अपुनर्बन्धक जीव द्वारा कृत तीनों प्रकार की ( जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट ) चैत्यवंदना जघन्य चैत्यवंदना ही क्यों कहलाती है ? 2. Jain Education International जघन्य जघन्य जघन्य मध्यम मध्यम मध्यम उ. अपुनर्बन्धक जीव प्रथम गुणस्थानक में होने से उसकी भाव विशुद्धि जघन्य कोटी की होती है इसलिये उनके द्वारा कृत सर्व वंदना (जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट) जघन्य चैत्यवंदना ही कहलाती है । प्र.657 अविरत सम्यग्दृष्टि जीव के जघन्य व उत्कृष्ट चैत्यवंदन को मध्यम चैत्यवंदन ही क्यों कहा गया है ? उ. चौथे गुणस्थान में स्थित अविरत सम्यग्दृष्टि जीवों की भाव विशुद्धि मध्यम कोटी की होती है, इसलिये उनके जघन्य व उत्कृष्ट चैत्यवंदना को मध्यम चैत्यवंदन कहा गया है । प्र.658 देशविरत और सर्वविरत द्वारा कृत जघन्य और मध्यम दोनों प्रकार के चैत्यवंदन को उत्कृष्ट चैत्यवंदन की संज्ञा क्यों दी गई ? देशविरती और सर्वविरति जीव क्रमश: पांचवें व छट्ठे गुणस्थानक में स्थित होने के कारण, उनकी भाव विशुद्धि, उनके अध्यवसाय विशुद्धि, उत्कृष्ट कोटी की होती है इसलिए उनके द्वारा कृत जघन्य और मध्यम चैत्यवंदना W चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी उत्कृष्ट उत्कृष्ट उत्कृष्ट For Personal & Private Use Only 179 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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