SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4. जिनेश्वर परमात्मा के दर्शन, वंदन के अवसर पर मन में हर्षोल्लास का अभाव । 5. संसार भय (भव भ्रमणा के भय) का अभाव । 'अनुपयोगो द्रव्यम' उपयोग का अभाव ही द्रव्य का लक्षण है अर्थात् उपयोग रहित कृत क्रिया द्रव्य क्रिया है । प्र.646 भाव वंदन के लक्षण बताइये ? उ. 1. चैत्यवंदन उपयोग पूर्वक करता हो । ____ 2. स्तुति,स्तोत्र या सूत्र का उच्चारण करते समय उसके अर्थ का मन में चिंतन हो। 3. आराध्य श्री अरिहंत परमात्मा के प्रति पूर्ण बहुमान भाव हो । ___4. वंदन, दर्शन के अवसर पर मन में हर्षोल्लास हो । 5. भव भम्रणा का भय हो । प्र.647 अपुनर्बन्धक किसे कहते है ? . उ. जो जीव चरम यथाप्रवृत्तकरण करने के बाद मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट - .. स्थिति का बंध नही करता, वह अपुनर्बन्धक कहलाता है। प्र.648 अपुनर्बन्धक के लक्षण बताइये ? उ. अपुनर्बन्धक जीव हिंसादि पाप तीव्र भाव (गाढ संक्लिष्ट परिणाम) से नही - करता है, संसार के प्रति राग, बहुमान भाव नही रखता है, देव-गुरू-धर्म की भक्ति करता है । अर्थात् पाप भीरु, संसार के प्रति बहुमान भाव का ....अभाव, उचित आचरण पालक होता है। प्र.649 सकृबन्धक किसे कहते है ? उ. जो चरमावर्ती मिथ्यादृष्टि जीव शेष संसार में केवल एक बार ही मोहनीय ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 177 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy