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________________ प्र.571 प्रणिधान की आवश्यकता आदि का दर्शक यन्त्र ? 1. आवश्यकता उ. 2. अन्तिम फल 3. निदान से वैलक्षण्य 4. सिद्धि में आद्य सोपान 5. अधिकारी 7. स्वरुप सामर्थ्य पारलौकिक चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International समस्त शुभ अनुष्ठानों में प्रथम आवश्यक कारण प्रणिधान । मोक्ष की प्राप्ति । निदान में चित्त आसक्ति मग्न है, जबकि प्रणिधान में अनासक्ति सन्मुख । कोई भी गुणसिद्धि या धर्म सिद्धि प्रणिधान - प्रवृत्ति - विघ्नजय - सिद्धिविनियोग इस क्रम से होती है । प्रणिधान के प्रति बहुमान भाव रखने वाला, विधित्पर और उचितवृत्ति वाला प्रणिधान का अधिकारी होता है । विशुद्ध भावना प्रधान हृदय और प्रस्तुत विषय में अर्पित मन से युक्त यथाशक्ति शुभ क्रिया, प्रणिधान है । अत्यल्प भी सम्यक् प्रणिधान सकल कल्याणों का आकर्षक है । प्रशस्त भाव से निर्मित पापक्षय- पुण्यबन्ध द्वारा धर्मकार्य उत्तम कुल-कल्याणमित्रादि की प्राप्ति । For Personal & Private Use Only 153 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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