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________________ है ? निम्न वस्तुओं की- 1. भव निर्वेद - संसार के प्रति वैराग्य भाव 2. मार्गानुसारी 3. इष्टफल की सिद्धि 4. लोक विरुद्ध का त्याग 5. गुरूजनों की पूजा 6. परोपकार की वृत्ति 7. सद्गुरू का योग 8. भवपर्यन्त उन सद्गुरू के वचनों की सेवा अर्थात् उनकी आज्ञानुसार चलने की शक्ति 9. भवोभव प्रभु चरणों की सेवा । जब तक मोक्ष की प्राप्ति न हो, तब तक अखण्ड रुप से ये भाव मन में उत्पन्न हो । प्र. 512 भव निव्वेओ से क्या तात्पर्य है ? जन्म - मरणादिं दुःख रुप संसार से निर्वेद विरक्ति उत्पन्न हो अर्थात् मन में वैराग्य के भाव उत्पन्न हो । उ. उ. प्र.513 भव- निव्वेओ के द्वारा परमात्मा से क्या याचना की जाती है ? उ. संसार के प्रति असारता के भाव अर्थात् देव, मनुष्य भव में सुखमय संसार भी असार है, संसार के भौतिक सुख मृग मरिचिका के समान क्षणिक है, भव भ्रमणा को बढाने के साधन है असली सुखं तो मोक्ष सुख है वही शाश्वत सुख है ऐसे भाव अंतर आत्मा में प्रगट हो, ऐसी याचना परमात्मा से की जाती है । प्र. 514 मग्गाणुसारिया ( मार्गानुसारिता) से क्या तात्पर्य है ? उ. दुराग्रह, कदाग्रह का त्याग करके तात्त्विक सत्य मार्ग के अनुकरण करने की वृत्ति, मार्गानुसारिता है । पंचाशक टीकानुसार मोक्ष मार्ग का अनुसरण करना, मग्गाणुसारिया है। प्र.515 मग्गाणुसारिया कथन द्वारा परमात्मा से क्या याचना की जाती है ? उ. मार्गानुसारी के 35 गुण हमारी अंतर आत्मा में उत्पन्न हो तथा मोक्ष मार्ग दशम प्रणिधान त्रिक 136 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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