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________________ प्र.505 प्रणिधान से क्या तात्पर्य है ? ‘प्रार्थनागर्भमैकाग्र' अर्थात् मन, वचन व लाया की अशुभ प्रवृत्तियाँ रोककर, एकाग्रता से परमात्मा की शरण स्वीकार करना, प्रत्येक जन्म (भवभव) में परमात्मा के शरण की याचना करना और भव निर्वेद की प्रार्थना करना, प्रणिधान है । प्र. 506 प्रणिधान का शब्दार्थ बताइये ? उ. ध्यान, एकाग्नता, ध्येय, निर्णय I प्र.507 प्रणिधान त्रिक के नाम बताइये ? उ. दशम प्रणिधान त्रिक उ. 1. चैत्यवंदन सूत्र 2. मुनिवंदन सूत्र 3. प्रार्थना सूत्र । प्र.508 चैत्यवंदन सूत्र किसे और क्यों कहते है ? उ. जावंति चेइयाइं सूत्र को चैत्यवंदन सूत्र कहते है । तीनों लोक में स्थित समस्त चैत्यों (मंदिर, प्रतिमा) को इस सूत्र के द्वारा वंदन किया जाता है, इसलिए इसे चैत्यवंदन सूत्र कहते है । प्र. 509 मुनिवंदन सूत्र किसे और क्यों कहते है ? उ. जावंत केवि साहु सूत्र को कहते है, क्योंकि इस सूत्र में ढाई द्वीप में विचरण करने वाले समस्त मुनि भगवंतों को भाव पूर्वक वंदना की गई है । प्र. 510 जय वीयराय सूत्र को प्रार्थना सूत्र क्यों कहते है ? उ. इस सूत्र में परमात्मा से आठ वस्तुओं की याचना (प्रार्थना) की गई है, इसलिए इसे प्रार्थना सूत्र कहते है । प्र.511 इस सूत्र के द्वारा परमात्मा से कौनसी वस्तुओं की याचना की गई चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only 135 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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