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________________ सम्यक्त्व निर्मल व दृढ बनता है तथा पूजा से जिन आज्ञा का पालन, भक्ति और शासन की प्रभावना होती है। प्र.443 असंविज्ञ देव कुलिका से क्या तात्पर्य हैं ? उ. जिस मंदिर की सार संभाल करने वाले श्रावक आदि कोई नही होते हैं, उस मंदिर को असंविज्ञ देवकुलिका कहते हैं । प्र.444 तीर्थंकर परमात्मा की भक्ति कितने प्रकार से कैसे की जाती हैं ? उ. पांच प्रकार से - 1. पुष्पादि से परमात्मा की पूजा-अर्चना करना 2. तीर्थंकर की आज्ञा का पालन 3. देवद्रव्य का रक्षण करना 4. उत्सव महोत्सव करना 5. तीर्थयात्रा करना। प्र.45 दादा गुरुदेव की पूजा कौनसी अंगुली से करनी चाहिये तथा यह भी बतायें कि नव अंगों की पूजा करनी चाहिया या एक अंग की ? कई स्थानों पर लोग अंगठे से दादा गुरुदेव की पूजा करते हमने देखा है । तो कई लोग नवांगी पूजन का निषेध करते हैं । उनका कथन है कि नवांगी पूजन परमात्मा की ही होती है । तो इस संबंध शास्त्र वचन क्या है ? उ. दादा गुरुदेव की पूजा अंगूठे से करना, उनकी घोर आशतना है। अंगूठे से तिलक केवल साधर्मिक श्रावक श्राविकाओं को किया जाता है। दादा गुरुदेव साधर्मिक श्रावक नहीं हैं । वे हमारे परम उपकारी आचार्य है। आगमों में आचार्य को तीर्थंकर तुल्य कहा है । तित्थयर समो सूरि अर्थात् ! तीर्थंकर परमात्मा की अनुपस्थिति में आचार्य तीर्थंकर तुल्य होते हैं । तो उनकी पूजा अंगूठे से कैसे की जा सकती है । उसकी पूजा ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी _113 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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