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________________ का फल प्राप्त होता है । पायक्खि वणेण पावइ, परि ससयं तं फलं जिणे महिए । पावह वरिस सहस्सं, अणंत पुण्णं जिणे थुणिए ॥ 4 ॥ 1. प्रदक्षिणा देने से 100 वर्ष के उपवास का फल प्राप्त होता है । 2. जिन पूजा करने पर 1000 वर्ष के उपवास का फल प्राप्त होता है। 3. परमात्मा का चैत्यवंदन, स्तुति, स्तवना करने से अनंत पुण्य का लाभ मिलता है 1 प्र. 441 प्रतिमा की प्रमार्जना, विलेपन करने और माला चढाने से कितना तप - लाभ होता है ? उ. पद्म चारित्रानुसार सयं पमज्जणे पुण्णं, सहस्सं च विलेवणे । सयं साहस्सिआ माला, अनंतं गीअवाइए || अर्थात् 1. प्रतिमा की प्रमार्जना करने से 100 वर्ष के उपवास का फल प्राप्त होता है । 2. विलेपन करने से 1000 वर्ष के उपवास का फल प्राप्त होता है । 3. माला चढाने से 100000 वर्ष के तप (उपवास) का फल मिलता है। 4. गीत - गान, वाजिंत्र आदि बजाने पर अनंत गुणा फल मिलता है । प्र.442 जिन पूजा करने से आगमानुसार किन-किन गुणों की प्राप्ति होती है ? 112 उ. जीवाण बोहिलाभो, सम्मदिट्ठीण होइ पिय करणं । आणा जिदि यत्ती, तित्थस्स पभावणा चेव | अर्थात् जिनपूजा से सामान्य जीवों को बोधि (सम्यक्त्व) की प्राप्ति होती है, 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only चतुर्थ पूजा क www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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