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प्र.435 जिन
उ.
करना, भाव धर्म है ।
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पूजा
1. चैत्यवंदन के समय परमात्मा के गुणस्तुत्यादि करने से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता हैं ।
से अष्टकर्मों का क्षय कैसे होता हैं ?
2. परमात्मन् प्रतिमा के दर्शन करने से दर्शनावरणीय कर्म का क्षय होता हैं। 3. जीव दया के भावों से भरकर, करुणा भाव से ओतप्रोत होकर, जय्णा का पालन करते हुए परमात्मा की पूजा करने से अशाता वेदनीय कर्म
का क्षय होता हैं ।
4. अरिहंत व सिद्ध परमात्मा के गुणों का स्मरण करने से क्रमश: दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय होता हैं ।
5. अक्षय स्थिति को प्राप्त करने वाले परमात्मा की पूजा से आयुष्य कर्म का क्षय होता हैं
6. अरिहंत परमात्मा के नाम स्मरण से नामकर्म से मुक्त होकर जीव अनाम अवस्था को प्राप्त करता है ।
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7. अरिहंत परमात्मा को वंदन - पूजनादि करने से नीच गोत्र कर्म का क्षय
होता है ।
8. परमात्मा की पूजा में शक्तिनुसार स्वद्रव्य आदि का उपयोग करने से अंतराय कर्म का क्षय होता है ।
प्र.436 जिनेश्वर परमात्मा को कल्पवृक्ष से उपमित क्यों किया गया है ? उ. 'दर्शनाद् दुरितध्वंसीः, वन्दनाद्वांछित् प्रदः ।
पूजनात् पूरक: श्रीणां, जिन साक्षात् कल्पद्रुमः ॥
अर्थात् जिनेश्वर परमात्मा का दर्शन पापनाशक, वंदन वांछित फल प्रदायक
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चतुर्थ पूजा
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