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________________ थोडे से पानी में से एक बार निकालना (खंखोलना, झारना) चाहिए । अशुद्ध वस्त्रों से कृत पूजन कर्म बन्धन का कारण बनता है । प्र.432 पूजा के वस्त्रों को कैसे रखना चाहिए ? उ. 1. पूजा के वस्त्रों की शुद्धता बनाये रखने के लिए प्रतिदिन उन्हें थोडे से पानी से धोना चाहिए। . 2. साधारण वस्त्रों के साथ पूजा का गणवेश (वस्त्र) नहीं रखना चाहिए । ___ उन्हें अलग से व्यवस्थित संजोकर रखना चाहिए । 3. पूजा के वस्त्रों का प्रक्षालन साधारण वस्त्रों के साथ नही करना चाहिए। प्र.433 क्या बिना स्नान किये पूजक ( श्रावक-श्राविका) जिन पूजा कर सकता है ? उ. ब्रह्मचर्य पालक पूजक हाथ-पैर को शुद्ध जल से धोकर, सामायिक के शुद्ध वस्त्रों को धारण कर और मुख कोश को बान्धकर जिनेश्वर परमात्मा को स्पर्श किये बिना वासक्षेप पूजा कर सकता है । प्र.434 जिनपूजा द्वारा चारों प्रकार के धर्म को समझाइये ? उ. 1. दान धर्म - परमात्मा के सम्मुख अक्षत आदि चढ़ाना, दान धर्म है। (अग्रपूजा) । 2. शील धर्म - भाव पूजा के तहत परमात्मा के सामने अपने विषय . ... विकार आदि मन के दोषों को प्रकट करते हुए उन्हें त्यागने की भावना, शील धर्म है । (भाव पूजा)। 3. तप धर्म - परमात्मा के सामने अशन-पानादि के सेवन का त्याग करना, तप धर्म है। 4. भाव धर्म - जिन पूजा करते समय जिनेश्वर परमात्मा का गुण कीर्तन ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी . 107 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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