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'कायकण्डूयणं वज्जे, तहा खेल विगि चणं । . . थुइ थुत्तं भणणं चेव पूअ तो जग बंधूणो ॥58॥ . देवाधिदेव जिनेश्वर परमात्मा की पूजा करते समय पूजक को शरीर खुजलाना, थुक, बलगम आदि थूकना (निकालना) तथा स्तुति-स्तोत्र आदि
बोलना, इन समस्त क्रियाओं का त्याग करना चाहिए। प्र386 पुष्प पूजा में कौनसे व कैसे पुष्पों से परमात्मा की पूजा करनी
चाहिए? उ. शतपत्र, सहस्रपत्र, जोइ, केतकी, चम्पक आदि सुन्दर श्रेष्ठ वर्ण वाले
सुगन्धित ताजे पुष्प, जो जमीन पर नहीं गिरे हैं, ऐसे पूर्ण पल्लवित पुष्पों
का उपयोग पुष्प पूजा में करना चाहिए । प्र387 कैसे पुष्पों का उपयोग पूजा में नहीं करना चाहिए ? उ. न शुष्कैः पूजये देव, कुसुमैर्न मही गतैः। .
न विशीर्ण दलैः, स्पृष्टै शुभैर्नाऽ विकाशिभिः॥ कीट कोशापविद्धानि, शीर्ण पर्युषितानि च । वर्जयेदूर्ण नाभेन, वासितं यद शोभितम् ॥ . अर्थात् सुखे, जमीन पर गिरे, टुटी पंखुडियों वाले, अशुभ वस्तुओं से स्पर्श हुए, अपूर्ण खिले, पुष्प की कलियाँ बरसात अथवा कीडों के द्वारा नष्ट हुई हो या दबी हो, एक दिन पूर्व का.तोड़ा बासी, मकड़ी के जाल से भरा, दुर्गन्ध युक्त और गन्दगी से भरे पुष्पों का उपयोग परमात्मा की पूजा
में नहीं करना चाहिए। प्र.388 अशुचिमय शरीर व जमीन पर गिरे पुष्पों से पूजा करने से पूजक
को क्या फल मिलता है ? ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
चतुर्थ पूजा त्रिक
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