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कर्मप्रकृति उदयप्रकृतीराह
पंच णव दोण्णि अट्ठावीसं चउरो कमेण सत्तट्ठी। दोण्णि य पंच य भणिया एदाओ उदयपयडीओ ॥१०६॥
५।९।२।२८।४।६७।२।५= १२२ उदयप्रकृतयो ज्ञानावरण-दर्शनावरण-वेदनीय-मोहनीयायुर्नाम-गोत्रान्तरायाणां क्रमेण पञ्च ५ नव है द्वे २ अष्टाविंशति २८ श्चतस्रः ४ सप्तषष्टिः ६७ व २ पञ्च ५ मिलित्वा द्वाविंशत्युत्तरशतं १२२ उदययोग्यप्रकृतयो भणिताः सर्वज्ञः ॥१०६॥ ता एव बन्धोदयप्रकृतीः भेदाभेदविवक्षया सङख्याति
भेदे छादालसयं इदरे बंधे हवंति वीससयं । भेदे सव्वे उदये वावीससयं अभेदम्हि ॥१०७॥
भेदबन्धे १४६ । अभेदबन्धे १२० । भदोदये १४८ । अभेदोदये १२२ । बन्धे भेदविवक्षायां षटचत्वारिंशच्छतं1 १४६ प्रकृतयो भवन्ति । अभेदविवक्षायां विंशत्युत्तरशतं १२. प्रकृतयो भवन्ति । उदये भेदविवक्षायां सर्वा अष्टचत्वारिंशच्छतं १४८ प्रकृतयो भवन्ति । अभेदविवक्षायां द्वाविंशत्युत्तरशतं १२२ प्रकृतयो भवन्ति ॥ .०७॥
इस प्रकार बन्ध-योग्य प्रकृतियों की संख्याका ग्रन्थकार निरूपण करते हैं
ज्ञानावरणकी पाँच, दर्शनावरणकी नौ, वेदनीय की दो, मोहनीयकी छब्बीस, आयु. कर्मकी चार, नामकर्मकी सड़सठ, गोत्रकर्मकी दो; ये सब बन्ध होने योग्य प्रकृतियाँ हैं ।।१०।।
भावार्थ-आठों कर्मोंकी बन्ध योग्य प्रकृतियाँ (५+५+२+२६+४+६+२+ ५=१२०) एक सौ बीस होती हैं ।
अब ग्रन्थकार उदय-योग्य प्रकृतियोंको गिनाते हैं
ज्ञानावरणकी पाँच, दर्शनावरणकी नौ, वेदनीयकी दो, मोहनीयकी अट्ठाईस, आयुकी चार, नामकर्मकी सड़सठ, गोत्रकी दो और अन्तरायकी पाँच। ये सब उदय-प्रकृतियाँ कही गयी है ॥१०६।।
भावार्थ-आठों कर्मोंकी उदय-योग्य प्रकृतियाँ (५+:+२+२+४+६+२+ ५= १२२ ) एक सौ बाईस होती हैं ।
अब ग्रन्थकार भेद और अभेद विवक्षासे बन्ध और उदयरूप प्रकृतियोंकी संख्या कहते हैं
भेद-विवक्षासे बन्धयोग्य प्रकृतियाँ एक सौ छयालीस हैं क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति; इन दो प्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता, किन्तु अभेद-विवक्षासे एक सौ बीस प्रकृतियाँ बन्ध योग्य होती हैं। भेद-विवक्षासे उदययोग्य सभी अर्थात् एकसौ अड़तालीस प्रकृतियाँ किन्तु अभेद-विवक्षासे एकसौ बाईस प्रकृतियाँ उदय-योग्य कही गयी हैं ॥१८७||
१. गो. क. ३६ । २. गो० क० ३७ । 1. ब सम्यग्मिथ्यात्व-सम्यक्त्वप्रकृतिद्वयं विना।
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