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________________ प्रकृति यस्य कर्मण उदयेन वज्रमयं अस्थि नाराचमेत्र द्वयं भवति सामान्यवृषभः । कोऽर्थः ? वज्रवद्दृढतररहितऋषभः सामान्यवेष्टनमित्यर्थः । तत्संहननं नाम्ना च वज्रनाराचं भणितम् ॥ ७८ ॥ ४० जस्सुदए वजमया हड्डा वो' वज्जरहिदणारायं । रिसहो तं भणियव्वं णाराय सरीरसंहडणं ||७६ || यस्य कर्मण उदयेन वज्रमयानि हड्डानि । वा पादपूरणे, उ अहो । नाराचो वज्ररहितः, पुनः वृषभः वज्ररहितः तन्नाराचसंहननं भणितव्यम् ॥ ७९ ॥ वज्रविसेसर हिदा अडीओ अद्धविद्धणारायं । जस्सुद तं भणियं णामेण य अद्धणारायं ॥ ८०॥ यस्य कर्मण उदयेन वज्रविशेषणरहिताः अस्थिसन्धयः नाराचेन अर्धविद्धाः । कोऽर्थः ? नाराचेनार्ध कीलिता इत्यर्थः । तन्नाम्ना अर्धनाराचसंहननं भणितम् ॥८०॥ जेस्स कम्मम्स उदए अवजहड्डाई खीलियाई व । दिधाणि हवंति हुतं की लियणामसंहडणं ॥ ८१ ॥ यस्य कर्मण उदयेन अवज्रास्थीनि कीलितानीव दृढबन्धनानि भवन्ति, हु स्फुटं तस्कीलिकानाम संहननं भवति ॥ ८३ ॥ जस्स कम्मस्स उदए अण्णोण्णम संपत्तहड्डसंधीओ । सिर-बंधाणि हवे तं खु असंपत्तसेवङ्कं ॥ ८२ ॥ यस्य कर्मण उदयेन श्रन्योन्यासम्प्राप्तास्थिसन्धयः सरीसृपवत् नरशिराबद्धाः खु स्फुटं तद्सम्प्राप्तासृपाटिकं भवेत् ॥ ८२ ॥ नाराच संहननका स्वरूप जिस कर्मके उदयसे हड्डियाँ तो वज्रमय हों किन्तु वेष्ठन और कीलें वज्रमय न हों उसे नाराचशरीरसंहनन कहना चाहिए ॥७६॥ अर्धनाराच संहननका स्वरूप जिस कर्मके उदयसे हड्डियाँ वज्रविशेषण से रहित हों और शरीर के अर्धभाग में कीलें लगी हों उसे अर्धनाराचसंहनन कहते हैं ॥८०॥ Jain Education International. कीलक संहननका स्वरूप जिस कर्मके उदयसे हड्डियाँ और कीलें वज्रमय न हों किन्तु हड्डियों में कीलें दृढ़ बन्धनवाली लगी हों उसे कीलकसंहनन कहते हैं ॥८१॥ सृपाटिक संहननका स्वरूप जिस कर्म के उदयसे हड्डियोंकी सन्धियाँ परस्पर में भिन्न हों और नसोंसे बँधी हुई हों उसे असम्प्राप्तासृपाटिकासंहनन कहते हैं ॥८२॥ १. आओ । २. त कम्मस्स जस्स । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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