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________________ प्रकृतिसमुत्कीतन गोत्रकर्मकार्यमाह संताणकमेणागयजीवायरणस्स गोदमिदि-सण्णा । उच्चं णीचं चरणं उच्चं णीचं हवे गोदं ॥१३॥ सन्तानक्रमणागतजीवाचरणस्य गोत्रमिति संज्ञा स्यात् । तच्च गोत्रं द्विविधम्-उच्चैनीभेदात् । तत्रोच्चाचरणमुच्चैर्गोत्रम् , नीचाचरणं न चैर्गोत्रं च भवति ॥१३॥ वेदनीयकर्मकार्यमाह अक्खाणं अणुभवणं वेयणियं सुहसरूवयं सादं । दुक्खसरूवमसादं तं वेदयदीदि वेयणीयं ॥१४॥ इन्द्रियाणामनुभवनं इन्द्रियविषयसुखानुभूतिः वेदनीयम् । तच्च सुखस्वरूपं सातं वेदनीयं भवति । दुःखस्वरूपमसातावेदनीयं भवति । ते द्वे सातासाते वेदनीये वेदयति ज्ञापयतीति वेदनीयम् ॥१४॥ अथ सामान्यतः जीवानां दर्शनादिगुणस्वरूपमाह अत्थं देक्खिय जाणदि पच्छा सद्दहदि सत्तभंगीहिं । इदि दसणं च णाणं सम्मत्तं हुंति जीवगुणा ॥१५॥ अयं संसारी जीवः अर्थ पदार्थं दृष्ट्वा जानाति, तमेवार्थ पुनः सप्तमङ्गोभिनिश्चित्य पश्चात् श्रद्धधाति - रोचते इत्यनेन प्रकारेण दर्शनं ज्ञानं सम्यक्त्वं च जीवगुणा भवन्ति ॥१॥ अब गोत्रकर्मका स्वरूप बतलाते हैं... सन्तान-क्रमसे अर्थात् कुलकी परम्परासे चले आये आचरणकी गोत्र यह संज्ञा है। उसके दो भेद हैं; उनमें से कुल-परम्परागत उच्च ( उत्तम ) आचरणको उच्चगोत्र कहते हैं और निन्द्य आचरणको नीचगोत्र कहते हैं ॥१३।। अब वेदनीय कर्मका स्वरूप बतलाते हैं जो कर्म इन्द्रियोंके विषयोंका अनुभवन अर्थात् वेदन करावे, उसे वेदनीय कहते हैं। उसके दो भेद हैं, उनमें से जो सुखरूप इन्द्रिय-विषयांका अनुभव करावे उसे सातावेदनीय कहते हैं और जो दुःख-स्वरूप इन्द्रिय-विषयोंका अनुभव करावे उसे असातावेदनीय कहते हैं ॥१४॥ ___ अब प्रावरणका क्रम बतलानेके लिए पहले. जीवके कुछ प्रधान गुणों का निर्देश करते हैं संसारी जीव पहले पदार्थको देखकर जानता है, पीछे सात भंगवाली नयोंसे निश्चय कर उनका श्रद्धान करता है । इस प्रकार दर्शन, ज्ञान और सम्यक्त्व ये तीन जीवके गुण सिद्ध होते हैं । अर्थात् देखना दर्शनगुण है, जानना ज्ञानगुण है और श्रद्धान करना सम्यक्त्वगुण है ॥१५॥ १. गो० क. १३ । २. गो० क०१४ । ३. गो० क० १५ ।' 1. ब जीवगुणस्वरूपमाह । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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