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________________ ३० कर्मप्रकृति गाथा-संख्या ११३-११४ सर्वघातिया प्रकृतियोंका नाम-निर्देश देशघातिया , " पुण्य प्रकृतियोंका पाप प्रकृतियों अनन्तानुबन्धी श्रादि चारों जातियोंकी कषायोंके कार्य संज्वलन आदि चारों जातियोंकी कषायोंका वासनाकाल पुद्गलविपाकी प्रकृतियोंका वर्णन भवविपाकी, क्षेत्रविपाकी और जीवविपाकी प्रकृतियोंका वर्णन जीवत्रिपाकी प्रकृतियोंका नाम-निर्देश नामकर्मकी सत्ताईस जीवविपाकी प्रकृतियोंका नाम-निर्देश ११८ १२०-१२१ १२२-१३६. १२२ १२३-१२७ १२८ १२९ १३०-१३३ स्थितिबन्धमूलकर्मोंको उत्कृष्ट स्थितिका निरूपण हत्ता प्रकृतियोंकी , कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बाँधनेका अधिकारी जीव कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति-बन्धका कारण-निरूपण विभिन्न प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध करनेवाले जीवोंका निरूपण मूलकर्मोंकी जघन्य स्थितिका निरूपण उत्तर प्रकृतियोंकी , शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति बाँधनेवाले जीवका निरूपण एकेन्द्रिय और विकलचतुष्कके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति के बन्धका निरूपण अनुभागबन्धशुभ और अशुम प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग-बन्धके कारणका निरूपण घातिया कर्मों के अनुभागकी चार जातियोंका वर्णन तथा उनमें देशघाती और सर्वघाती । अनुभागका विभाजन दर्शनमोहकी तीनों प्रकृतियोंके देशघाति-सर्वघाति अनुभागका विभाजन अघातिकर्मोंकी पुण्य और पाप प्रकृतियोंके अनुभागका वर्णन १३५.१३७ १३८ १३९ १४०-१४३ १४० . १४१ १४२ .. १४३ १४४-१६१ १४४ १४५ १४६ प्रदेशबन्धज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्मके बन्धके विशेष कारणोंका निरूपण वेदनीय कर्मके दोनों भेदोंके असातावेदनीयके दर्शनमोहके चारित्रमोहके नरकायुके तिर्यगायुके मनुष्यायुके १४७ १४८ १४९ १५० १५१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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