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________________ २८ नामकर्मका दृष्टान्तपूर्वक स्वरूप और भेद गोत्रकर्मका अन्तरायकर्मका 27 आठों कर्मों के उत्तर भेदोंकी संख्याका निरूपण आमिनिबोधिक (मति) ज्ञानका स्वरूप 35 श्रुतज्ञानका स्वरूप अवधिज्ञानका मन:पर्ययज्ञानका केवलज्ञानका ज्ञानावरणके पाँचों भेदोंका नाम-निर्देश दर्शनका स्वरूप चक्षुदर्शन और चक्षु दर्शनका स्वरूप 33 11 अवधिदर्शनका स्वरूप केवलदर्शनका स्वरूप दर्शनावरण कर्मके नौ भेदों का निरूपण स्त्यानगृद्धि और निद्रानिद्राका स्वरूप प्रचलाप्रचला और निद्राका स्वरूप प्रचलाका स्वरूप datta दो भेदों का नाम-निर्देश मोहकर्मके मूल दो भेदों का नाम-निर्देश दर्शनमोहके तीन भेदोंका निर्देश Jain Education International. दर्शन मोहके तीन भेदोंकी उत्पत्तिका सदृष्टान्त, निरूपण चारित्रमोहकर्मके मूल दो भेद और उनके उत्तर भेदोंका निर्देश कषायमोहनीयके सोलह भेदों का नाम-निर्देश क्रोधकषायकी चार जातियाँ और उनका फल मानकषायकी मायाकषायकी ,, लोभकषायकी कषाय शब्दकी निरुक्ति और कार्यका निरूपण नव नोकषायोंके नाम स्त्रीवेदका स्वरूप पुरुषवेदका स्वरूप नपुंसकवेदका स्वरूप आयु और नामकर्मके उत्तर भेदोंकी संख्या गति और जाति नामकर्मके भेदोंका निरूपण शरीरनामकर्म के सरनामकर्मके संयोगी 31 22 22 11 " 71 11 कृ 21 For Personal & Private Use Only गाथा संख्या: ३३ ३४ ३५ ३६ ३७. ३८ ३९. ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ ४६ ४७-४८ ४९ ५० ५१ ५२ ५२ ५३ ५४ ५.५ ५६ ५७ ५८ ५९ ६० ६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ ६९ www.jainelibrary.org
SR No.004239
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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