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________________ ८१. मेरुसुन्दर दशवैकालिक वृत्ति ८२. माणिक्यशेखर दशवैकालिक वृत्ति ८३. ज्ञानसागर दशवैकालिक वृत्ति ८४. क्षमारत्न पिण्ड नियुक्ति वृत्ति ८५. माणिक्यशेखर पिण्ड नियुक्ति वृत्ति ८६. जयदयाल नन्दिवृत्ति ८७. पार्श्वचन्द्र नन्दिवृत्ति ८८. ज्ञानसागर (सं. १४३९) ओघ नियुक्ति ८९. माणिक्यशेखर ओघ नियुक्ति ९०. ब्रह्ममुनि (ब्रह्मर्षि) दशाश्रुतस्कन्ध वृत्ति उपर्युक्त वृत्ति और वृत्तिकारों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत न करके एक संक्षिप्त परिचय दिया गया है। वृत्तिकारों ने अन्य कई वृत्तियाँ भी लिखी हैं, जिनका उल्लेख इतिहासकारों ने अलग-अलग विवेचनों में प्रस्तुत किया है। आज उपलब्ध वृत्तियों पर केवल कथन मात्र ही किया जाता है, उस पर परिचयात्मक दृष्टिकोण अपने आप में वृत्तियों की विषय की गंभीरता को प्रस्तुत कर सकेगा। यह एक स्वतन्त्र अनुसंधान का विषय है। विचारकों के सामने एवं मेरे स्वयं की दृष्टि में यह जिज्ञासा बनी रही कि वृत्ति के रहस्य को अलग-अलग खोला जाए। यह कठिन कार्य हजारों हाथों से ही संभव है दो हाथों से शीलांक-आचार्य के आचारांग सूत्र पर प्रस्तुत विवेचन. को भारी मानते हुए जो कुछ प्रयास किया जा रहा है, वह सूर्य को दीपक दिखाने की तरह होगा। आज भी वृत्तियों की खोज की आवश्यकता है। शास्त्र भण्डार मौन पड़े हुए हैं। वे ऐसे व्यक्ति की आकांक्षा कर रहे हैं जिनमें वृत्ति रूप पर्वत को उठाने की शक्ति है। हमारे प्राचीन भण्डार निश्चित ही सांस्कृतिक धरोहर के प्रहरी हैं। इसलिए ऐसा प्रयास आवश्यक हो जाता है कि अनुसंधानकर्ता सामान्य विषयों की अपेक्षा इस तरह. के दुरूह कार्य को संपादित कर अनुसंधान के क्षेत्र को बढ़ाएँ । आचारांग वृत्ति इन वृत्तियों में इसलिए महत्त्वपूर्ण नहीं है कि यह आचारांग सूत्र का प्रथम परिचय है। आगमों में यह प्रथम आगम है। इसलिए भी इसका महत्त्व नहीं है, अपितु यह आचारांग वृत्ति की नयात्मक, दार्शनिक दृष्टि शब्द की विश्लेषणात्मक पद्धति, पारिभाषिक विवेचना और पर्यायवाची शब्दों की श्रृंखला भी वृत्ति की शोभा बढ़ाने वाली है। शीलांक आचार्य की इस वृत्ति में बहुत कुछ है। इसलिए अन्य आगमों की वृत्ति की तरह इस वृत्ति का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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