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________________ है वही कर्म है और कर्म एक बंध है जो पुनर्जन्म की श्रृंखला का आधार इस बंध से मुक्ति का मार्ग अहिंसा है। जो जीवन शैली आत्मकल्याण के मार्ग को प्रशस्त कर मुक्ति की ओर ले जावे वह आचार है। जीवनचर्या में हेय और श्रेय का निरूपण आचाराङ्ग में विस्तार से किया है। जीव के अस्तित्व और स्वरूपों से आरंभ कर पुनर्जन्म की श्रृंखला से मुक्त होने तक जीवन के सभी पहलुओं की चर्चा संक्षिप्त किन्तु सटीक सूत्रों में बांध देना आचाराङ्ग की विशेषता है। एक-एक शब्द ज्ञान की जाज्वल्यमान शिखा जैसा है जिसका प्रकाश चहुँ ओर विस्तीर्ण होता रहता है। यही कारण है कि आचाराङ्ग पर आधारित व्याख्या साहित्य विशाल है। ___आचाराङ्ग के गहन और व्यापक विषय को स्पष्ट करने के प्रयत्नों में सर्वप्रथम नियुक्ति साहित्य का स्थान है। जैन आगम साहित्य पर प्राकृत भाषा में जो पद्यबद्ध टीकाएं लिखी गईं वे नियुक्ति के नाम से जानी जाती हैं। नियुक्ति में मुख्य रूप से पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या की जाती है। उपलब्ध नियुक्तियाँ आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) द्वारा रचित अथवा संकलित नियुक्ति के पश्चात् भाष्यों की रचना हुई किन्तु आचाराङ्ग पर लिखे गए किसी भाष्य की कोई सूचना प्राप्त नहीं है। भाष्यों के पश्चात् चूर्णियों की रचना हुई। जैन आगमों की प्राकृत अथवा संस्कृत मिश्रित व्याख्याएं चूर्णियाँ कहलाती हैं। आचाराङ्ग पर जो चूर्णि उपलब्ध है उसके कर्ता जिनदास गणि माने जाते हैं किन्तु इस संबंध में कोई स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता। आचाराङ्ग चूर्णि में उन्हीं विषयों का विस्तार है जिनकी चर्चा नियुक्ति में है। इसके अतिरिक्त इसमें महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री भी उपलब्ध है। चूर्णि के पश्चात् टीका साहित्य की रचना हुई। संस्कृत भाषा का प्रभाव बढ़ते देखकर जैन आचार्यों ने अपने प्राचीन आगम साहित्य पर संस्कृत भाषा में टीकाओं की रचना आरंभ कर दी। इन टीकाओं में प्राचीन नियुक्तियों, भाष्यों व चूर्णियों की सामग्री समेटने के अतिरिक्त नए दृष्टिकोण से तथ्यों की पुष्टि भी की गई है। (४) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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