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२. आतुर प्रत्याख्यान-यह समाधिमरण के पक्ष को प्रतिपादित करने वाला प्रकीर्णक है। इसमें ७० गाथाएँ हैं। कुछ अंश गद्य भाग से युक्त है। साधक के लिए प्रत्याख्यान आवश्यक है इसलिए उन्हें बार-बार समझाया गया कि बाल मरण, बालपण्डित मरण और पण्डित मरण किस व्यक्ति को प्राप्त होता है इसका सम्यक् विवेचन इस प्रकीर्णक की विशेषता है। इसमें अतिचारों की शुद्धि आदि का भी विचार किया गया है। इसके रचनाकार वीरभद्र हैं।
३. महाप्रत्याख्यान इस प्रकीर्णक में तीर्थंकर जिन देव, सिद्धि एवं संयतजनों को नमन किया गया है। इसमें दुश्चरित्र की निन्दा की गई है। ज्ञान, दर्शन और चरित्र की प्रशंसा करके आत्मा की शुद्ध अवस्था पर प्रकाश डाला गया है। इसमें एकत्व भावना, त्याग मार्ग, संसार परिभ्रमण का कारण, महाव्रतों की श्रेष्ठता, ज्ञानी और अज्ञानी आदि के विषय को प्रतिपादित किया गया है सर्वत्र प्रत्याख्यान का विवेचन होने के कारण से इसे महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक कहा गया है इसमें १४२ गाथाएँ हैं, वे सभी वास्तविक आनन्द के मार्ग को सूचित करने वाली हैं।
४. भक्त-परिज्ञा-इस प्रकीर्णक ग्रन्थ में मूलतः सम्यक् दर्शन की श्रेष्ठता को प्रतिपादित किया गया है। सम्यक् दर्शन से भ्रष्ट व्यक्ति को निर्वाण प्राप्त नहीं होता है। सम्यक् दर्शन से रहित साधक चारित्र की उत्कृष्टता को भी प्राप्त नहीं हो पाते हैं जो सम्यक् दर्शन से रहित है वह सिद्ध नहीं हो सकता है ।२८ सम्यक् सुख की उपलब्धि का कारण सम्यक् आराधना है। पण्डित मरण से आराधना पूर्ण रूप से सफल होती है। भक्त परिज्ञा प्रकीर्णक में इसका उल्लेख करते हुए मरण के तीन भेद किये हैं
१. भक्त परिज्ञा, २. इंगिनी मरण और ३. पादपीयगमन ।
इसमें भक्त परिज्ञा की 'प्रधानता' है। यह कुल १७२ गाथाओं का प्रकीर्णक है। इसके रचनाकार वीरभद्र हैं। गुणरत्न ने इस पर अवचूरि भी लिखी है।
५. तन्दुल वैचारिक-प्रस्तुत प्रकीर्णक में महावीर को नमन करने के पश्चात् सौ वर्ष की आयु की परिगणना की गई है, इसमें जीव की दस अवस्थाओं का विवेचन है, जिनके नाम इस प्रकार हैं
१. बाल दशा, २. क्रीड़ा दशा, ३. मंदा दशा, ४. बला दशा, ५. प्रज्ञा दशा, ६. हायनी दशा, ७. प्रपंचा दशा, ८. प्राग्भारा दशा, ९. उन्मुखी दशा और १०. शायनी
दशा
इन दस दशाओं में मनुष्य की आहार विधि, गर्भ अवस्था, शरीर के उत्पादक कारण, संहनन, संस्थान, तन्दुल गणना आदि का विवेचन है। इसका अधिकांश विवेचन गर्भावस्था से सम्बन्धित है। इसमें कुल १३९ गाथाएँ हैं, कहीं-कहीं पर गद्य भाग भी
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आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन
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