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________________ के जीवन व्यवहार से सम्बन्धित तथ्यों पर प्रकाश डालने वाला है । इसका प्रत्येक अध्ययन श्रमणों की आचार संहिता को जीवन्त बनाने वाला है । इस तरह यह सूत्र ग्रन्थ कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । ५. पञ्चकल्प-सूत्र—प्रस्तुत आगम वर्तमान में उपलब्ध नहीं है । पञ्चकल्प-सूत्र और पञ्चकल्प महाभाष्य दोनों दो भिन्न ग्रन्थ नहीं एक ही हैं, ऐसा विद्वानों का अभिमत 1 ६. महानिशीथ - सूत्र — इसमें आलोचना और प्रायश्चित्त विधि का प्रतिपादन किया गया है। महाव्रत में, विशेष करके चतुर्थ महाव्रत में, दोष लगने पर साधक को कितना दुःख सहन करना पड़ता है इसका वर्णन है । इसमें कर्म सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है। भाषा और विषय की दृष्टि से इसकी प्राचीन आगमों में गणना नहीं की जा सकती। इसमें तान्त्रिक विषय एवं जैनागमों के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों का भी उल्लेख मिलता है । प्रकीर्णक श्रुत का अनुसरण करके वचन, कौशल से धर्म देशना आदि के प्रसंग से श्रमणों द्वारा कथित रचनाएँ प्रकीर्णक कही जाती हैं । २५ ये रचनाएँ पद्यात्मक हैं । मलयगिरि ने नन्दी सूत्र की टीका में लिखा है कि तीर्थंकर द्वारा उपादिष्ट सूत्र का अनुसरण करके श्रमण प्रकीर्णकों की रचना करते हैं । २६ प्रकीर्णकों की संख्या १४००० मानी गई है । प्रचलित प्रकीर्णक निम्न प्रकार हैं १. चतुः शरण, २ . आतुर - प्रत्याख्यान, ३. महाप्रत्याख्यान, ४. भक्त - परिज्ञा, ५. तन्दुल वैचारिक, ६. संस्तारक, ७. गच्छाचार, ८. गणिविद्या, ९. देवेन्द्रस्तव और १०. मरण समाधि । मूलतः प्रकीर्णकों में शरण, समाधि मरण, भक्त परिज्ञा, व्रत अङ्गीकरण, जन्म-स्थान, आत्मा की एकाग्रता, विविध प्रकार की स्थिति, ग्रह, नक्षत्र का वर्णन आचार की प्रमुखता को ध्यान में रख कर किया गया है। प्रकीर्णकों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है १. चतुः शरण - अरहन्त, सिद्ध, साधु और धर्म - ये चार शरण हैं। ये चारों ही लोक प्रसिद्ध हैं। जो इनकी शरण में जाता है वह अक्षय निधि को प्राप्त करता है, आत्मसिद्धिं को प्राप्त करता है। इस सूत्र में लिखा है कि अरहन्त, सिद्ध, साधु और केवली कथित धर्म सुख को प्रदान करने वाला है । यही सच्ची शरण है तथा चतुर्गति के परिभ्रमण को उपशान्त करने वाली है । २७ इसमें कुल ६३ गाथाएँ हैं । यह वीरभद्र की रचना है । इस पर भुवनतुंग की वृत्ति और गुणरत्न की अवचूरि उपलब्ध है । सोमसुन्दर ने संस्कृत में अवचूर्णि भी लिखी है। इसके चारों शरण कुशल शुभ कार्यों के सूचक हैं इसलिए इसका दूसरा नाम कुशलानुबन्ध है । आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only १७ www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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