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वैदिक ग्रन्थों में पुराण, न्याय और धर्मशास्त्र को उपांग कहा गया है। चार वेदों के भी अङ्ग हैं और उनके उपांग भी होते हैं। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरूक्त और ज्योतिष-ये छ: अङ्ग हैं। पुराण, न्याय मीमांसा और धर्मशास्त्र उपांग हैं। अङ्गों की रचना गणधरों ने की है और उपांगों की रचना स्थविरों ने की है इसलिए दोनों का सम्बन्ध घटित नहीं होता है, फिर भी अङ्ग ग्रन्थों की तरह उपांग ग्रन्थों का भी अपना स्थान है। वे द्वादशांग की तरह भी द्वादश संख्या रूप हैं जिनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है
द्वादश-उपांग उपांग-आगम-साहित्य
१. औपपातिक सूत्र इस आगम में चम्पा नगरी, पूर्ण भद्र उद्यान, वन खण्ड, अशोक वृक्ष, पृथ्वी-शिला का और चम्पा के अधिपति कोणिक राजा, महारानी धारणी.
और उसके राज-परिवार तथा भगवान् महावीर का वर्णन है। इसमें विभिन्न सम्प्रदायों के तापस श्रमणों एवं भिक्षुओं, परिव्राजकों और उसके साधनों के द्वारा प्राप्त होने वाली देवगति में उपपात आदि का उल्लेख है। कर्म बन्ध के कारण केवली समुद्घात और सिद्ध स्वरूप का भी वर्णन है । देव नारकियों के जन्म एवं सिद्धि-गमन के कारण का वर्णन इस सूत्र में है। औपपातिक सूत्र में ४३ सूत्र हैं। इस पर अभयदेव सूरि ने वृत्ति रची है।
२. राजप्रश्नीय सूत्र-इसे रायपसेणिय भी कहा जाता है। इसमें राजा प्रसेनजित नाम की कथा है। इसमें भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के केशी श्रमण के साथ एक नास्तिक राजा प्रदेशी के जीवन का वर्णन किया गया है। राजा का जीवन परिवर्तन एवं श्रावक धर्म का परिपालन करना, समाधिपूर्वक मरण, सूर्याभ नामक देव का बनना आदि वर्णन प्रस्तुत आगम में है।
राजप्रश्नीय की गणना प्राचीन आगम ग्रन्थों में की जाती है। यह विषय वर्णन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि इसमें दार्शानिक प्रश्नों का समाधान विविध दृष्टियों से किया गया है। यह दो भागों में विभक्त है, जिसमें २१७ सूत्र हैं। मलयगिरि ने १२वीं शताब्दी में इस पर टीका रची है।
प्रस्तुत आगम जहाँ विविध सूचनाओं को देने वाला ग्रन्थ है, वहाँ नाट्य रचना, वेदिका सोपान, प्रतिष्ठान, स्तम्ब, इलुका, इन्द्रकील आदि अभिनय का वर्णन भी है। इसमें स्थापत्य कला, संगीत कला और नाट्य कला भी देखने को मिलती है।
३. जीवाभिगम-प्रस्तुत आगम में जीव-अजीव, द्वीप, समुद्र, नदी आदि का विस्तृत वर्णन है। जीवाभिगम का अर्थ है-जिस आगम में जीव और अजीव का अभिगम ज्ञान है। इसमें नव प्रकरण हैं। इसमें गणधर और महावीर के प्रश्न और उनके उत्तर आदि कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं । इसमें २० विभाग हैं । इसकी मलयगिरि
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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