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आगम-विवेचन
श्रमण और वैदिक विचारधारा भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है । इसके विचारकों और चिंतकों ने नये-नये आयाम प्रस्तुत किये हैं । चिन्तन की गतिवान् परम्परा दोनों ही रूपों में रहेगी । श्रमण चिन्तन के सूत्रधारों ने भ. महावीर उपदिष्ट वचन को जनोपयोगी बनाने के लिए श्रुत के रूप में स्थापित किया है। श्रुत मूलतः वीतराग वाणी है, सर्वज्ञ का सार्वभौमिक दृष्टिकोण है, जगत के समस्त वस्तु तत्त्वों का रहस्य है, जिसे विचारशील श्रुतधारकों द्वारा धारण किया गया, सुरक्षित रखा गया, तदनन्तर लिपिबद्ध किया गया। और यह अद्यतन आगम साहित्य के रूप में उपलब्ध है 1
श्रमण संस्कृति की विचारधारा सदैव अध्यात्म चिन्तन को बल देती रही है । उसमें निवृत्ति से प्रवृत्ति और प्रवृत्ति से निवृत्ति का मार्ग सामने आया ।
जैनागम की यह अमूल्य धरोहर भारतीय संस्कृति का प्रमुख केन्द्र बन जाती है, जिनकी सुरक्षा एवं उपादेयता तात्कालिक परिस्थितियों, धार्मिक चिन्तन से परिपूर्ण भावों, सांस्कृतिक मूल्यों से ओत-प्रोत सामग्री आदि से अभिव्यंजित हुई है । जैनागमों की उपादेयता को ध्यान में रखकर अनुसंधान के इस क्रम में नया अध्याय हो सकता है। जैनागमों का चयन जीवन-मूल्यों के चयन से कम नहीं है । इसलिए आगमों में जिस जीवन-मूल्य की चेतना को उजागर किया गया है, उसकी विशेषताओं पर आधारित यह आलेख दिशा सूचक बनेगा ।
आगम शब्द का प्रयोग
आगम अनादि है। आप्त के वाक्य के अनुरूप आगम है । जिन्हें आगम, सिद्धान्त या प्रवचन / प्रख्यणा भी कहा जाता था । ' आप्त आज्ञा आगम है, शासन है, एक-दूसरे के विरोध से रहित वचन रूप आगम है । आगम में असत्य वचन नहीं होते हैं, क्योंकि आगम सर्वज्ञ द्वारा उपदिष्ट हैं। उनके वचनों में कहीं भी, किसी भी तरह का विरोध नहीं होता है, इसलिए आगम वचन सत्य पर आधारित हैं और उनका जितना भी प्रतिपाद्य विषय है वह आज भी चिन्तन को प्रस्तुत करने वाला है ।
आगम शब्द के विषय में कई दृष्टियों से विचार किया जाता है। वैदिक संस्कृति की अपेक्षा आगम वेद है । बौद्ध विचारधारा में आगम पिटक के रूप में हैं और श्रमण संस्कृति के चिन्तन में आगम श्रुत रूप में हैं। जिन्हें श्रुत, सूत्र, ग्रन्थ,
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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