________________ 100. आ.ब. 257, सव्वेऽषिय वयणविसोहिकरि गा। 101. आचारांग वृत्ति, पृष्ठ 257 102. आचारांग वृत्ति, पृष्ठ 239 103. आचारांग वृत्ति, पृष्ठ 218 104. वही, पृष्ठ 220 105. वही, पृष्ठ 221 106. वही, पृष्ठ 222 107. आचारांग वृत्ति, पृष्ठ 239 “सम्पूर्ण भिक्षुभावो यदात्मोत्कर्षवर्जनमिति" 108. आचारांग वृत्ति, पृष्ठ 220 “स गृहस्थ: कारणे संयतो वा स्वयमेव संस्कारयेदित्युपसंहरति / " 109. वही, पृष्ठ 59 110. आचारांग वृत्ति, पृष्ठ 132 गृहाश्रमसमोधम्मों, न भूतो न भविष्यति / पालयन्ति नरा: शूराः, क्लीवा: पापण्डमाश्रितः / / 111. आचारांग वृत्ति, पृष्ठ 86 112. वही, पृष्ठ 91 113. आचारांग वृत्ति, पृष्ठ 146 114. आचारांग वृत्ति, पृष्ठ 82 115. (क) जैन आचार सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 325 __ (ख) भगवती सूत्र 116. आचारांग वृत्ति, पृष्ठ 132 000 262 आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org