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________________ चने चबाना कठिन है / 192 इसलिए विवेकपूर्ण श्रावक शारीरिक और मानसिक शान्ति के लिए अध्यात्म का मार्ग अपनाते हैं। श्रावक के व्रत श्रावक के बारह व्रत आगम एवं सिद्धान्त ग्रन्थों में निरूपित किये गये हैंबारह व्रतों में पाँच अणुव्रत, तीन गुण व्रत और चार शिक्षा व्रत आते हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-ये पाँचों गृहस्थों के मूलाधार हैं। इन व्रतों से सूक्ष्म एवं मर्यादित जीवन व्यतीत करने की शिक्षा मिलती है। पञ्च अणुव्रत(१) अहिंसाणुव्रत (स्थूल प्राणातिपातविरमण) अहिंसाणुव्रत में अहिंसा की मर्यादा पर विशेष ध्यान दिया जाता है / श्रावक बन्ध, वध, छविच्छेद, अधिभार और भक्तपान विच्छेद-इन पाँच अतिचारों से रहित अपनी क्रियाएँ करता है। (2) सत्याणुव्रत (स्थूल मृषावाद विरमण) सच्चंखु अणवज्जं वयंति-सत्य अनवद्य/अपापकारी वचन हैं। इसमें असत् को स्थान नहीं दिया जाता है / वृत्ति, श्रावक सहसाभ्याख्यान, रहस्याभ्याख्यान, स्वदार मंत्र भेद, मिथ्योपदेश और कूटलेख प्रक्रिया, इन दोषों से श्रावक बचता है और सावधानीपूर्वक सत्यव्रत के पालन में दृढ़ रहता है। (3) अचौर्याणुव्रत (स्थूल अदत्तादान विरमण) श्रावक इस व्रत के पालन करने में अचौर्य का भाव रखता है, वह अज्ञात व्यक्ति की वस्तु को न उठाता है और न ही पास में रखता है। वह स्तेनाहृत, तस्कर प्रयोग, विरुद्धराज्यातिक्रम, कूटतुला-कूटमान और तत्प्रतिरूपक व्यवहार का सावधानीपूर्वक पालन करता है। (4) ब्रह्मचर्याणुव्रत-. (स्वदार-सन्तोषव्रत) श्रावक का जीवन इससे संतोषी बना रहता है। वह मैथन को छोड़कर काम-वासना पर नियंत्रण रखता है। ब्रह्मचर्य व्रती 13 इत्वरिक परिग्रहीतागमन, अपरिग्रहीतागमन, अनंग क्रीड़ा, पर-विवाह-करण और काम-भोग तीव्राभिलाषा-इन दोषों से बचता है। (5) अपरिग्रहाणुव्रत___ . (स्थूल परिग्रह 14 परिमाण व्रत) क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद और कुप्य या गोप्य-इन नौ परिग्रहों में आसक्ति न रखते हुए श्रावक अपने व्रत का पालन करता है तथा क्षेत्र वस्तुपरिमाणातिक्रम, हिरण्य-सुवर्ण परिमाणातिक्रम, आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन 253 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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