________________
सामग्रियों को समेटे हुए है, जहाँ इनमें तत्वचिंतन की गहराई है, वहीं सामाजिक चेतना एवं ऐतिहासिक सामग्रियाँ भी विपुल रूप से हैं। आगम की प्रमुख वृत्तियाँ
टीका साहित्य में संस्कृत भाषा की व्याख्याओं का महत्वपूर्ण स्थान है। आगम व्याख्याकारों ने जो टीकाएँ लिखीं, उन्हें वृत्ति नाम दिया; क्योंकि वृत्ति विस्तृत विवेचन को प्रस्तुत करने वाली होती है, जो संस्कृत भाषा के उत्कर्ष को भी प्रतिपादित करती है। जैनाचार्यों ने साहित्य के उत्कर्ष युग में जो विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किए, उनका संस्कृत समाज में समादर हुआ। संस्कृत व्याख्याओं के विविध नाम दिए गए। जिन्हें टीका, वृत्ति, विवृत्ति, विवरण, विवेचन, व्याख्या, वार्तिक, दीपिका; अवचूरी, अवचूर्णि, पंजिका, टिप्पण, टिप्पणक, पर्याय, स्तवक, पीठिका, अक्षरार्थ आदि नाम दिया गया। जैन और जैनेतर दोनों ही काव्यों पर संस्कृत में टीकाएँ लिखी गईं, जो आज भी पूज्य एवं मान्य है।
आगमों पर जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यक भाष्य स्वोपज्ञवृत्ति लिखी। आचार्य हरिभद्र ने अपने समय में पचहत्तर ग्रंथों की रचना की। उनमें प्राकृत आगमों की वृत्ति के रूप में नन्दीवृत्ति, अनुयोगद्वार वृत्ति, दशवकालिक वृत्ति, प्रज्ञापनाप्रदेशव्याख्या, आवश्यक वृत्ति आदि प्रमुख हैं। कोट्याचार्य ने विशेषावश्यक भाष्य पर विवरण लिखा। आचार्य गंधहस्ती ने भी आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध पर विवरण प्रस्तुत किया। आ. शीलांक की आचारांग वृत्ति, सूत्रकृतांगवृत्ति का महत्वपूर्ण स्थान है। वादिवेताल शांतिसूरि कृत तिलकमंजरी टिप्पण, जीवविचार प्रकरण, चैत्यवन्दनमहाभाष्य व उत्तराध्ययन वृत्ति का महत्वपूर्ण स्थान है। द्रोणाचार्य ने ओघनियुक्ति व लघु भाष्य पर वृत्तियाँ लिखी हैं । आ. अभयदेव की स्थानांगवृत्ति, समवायांगवृत्ति, व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति, ज्ञाताधर्मकथावृत्ति, उपासकदशांगवृत्ति, अन्तकृद्दशावृत्ति, अनुत्तरोपपातिकवृत्ति, प्रश्नव्याकरणवृत्ति, विपाकवृत्ति, औपपातिकवृत्ति आदि सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों को लिए हुए हैं। आ. मलयगिरि ने राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, चंद्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, नंदीसूत्र, व्यवहारसूत्र, बृहत्कल्प, आवश्यक, पिंडनियुक्ति, ज्योतिषकरण्डक, धर्मसंग्रहणी, कर्मप्रकृति, पंचसंग्रह, षडशीति, सप्तिका, बृहत्संग्रहणी, बृहत्क्षेत्रसमास आदि पर वृत्तियाँ लिखी हैं।
आचार्य मलधारी हेमचंद्र की आवश्यक टिप्पण, शतक विवरण, अनुयोगद्वार वृत्ति, पुष्पमाला, पुष्पमालावृत्ति, जीवसमासविवरण, भवभावना सूत्र, भवभावना विवरण, नंदीटिप्पण, विशेषावश्यक भाष्य बृहद्वृत्ति आदि प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । आचार्य नेमिचंद्रकृत उत्तराध्ययन की सुखबोधावृत्ति सरल एवं सरस है। चंद्रसूरि ने नन्दीसूत्र, निशीथ, जीतकल्प आदि पर वृत्तियाँ लिखी हैं।
(२२)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org