________________
पक्षों की समीक्षा करते हैं। आचारांग वृत्ति के वृत्तिकार शीलांक आचार्य ने श्रमण धर्म के इस बहुमूल्य एवं सर्वप्रथम आचार सिद्धान्त की विवेचना करने वाले आचारांग सूत्र ग्रन्थ में जो कुछ भी कथन थे, उस पर सम्यक् रूप से विवेचन किया। उसमें सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक आदि जितने भी पक्ष थे, उन पक्षों पर प्रकाश डालना सहज कार्य नहीं है फिर भी यत्र-तत्र बिखरी हुई सामग्री को समेट कर समाज के स्वरूप का एक सांस्कृतिक पक्ष अपने आप में महत्त्वपूर्ण होगा।
इसमें ऐतिहासिक सामग्री, धार्मिक व्यवस्था, श्रमण समाज, गृहस्थ समाज, शासन व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था, कुटुम्ब एवं परिवार प्रथाएँ, उत्सव, भोजन, आवास, गृह, वस्त्राभूषण, रोग-उपचार, मनोरंजन के साधन, वाणिज्य, कृषि, प्रथाएँ, पशु-पक्षी, दण्ड व्यवस्था आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
0.00
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
२०१
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org