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पशु-पक्षी
आचारांग में विविध प्रकार के जीवों का विवेचन है। त्रसकाय जीवों में मनुष्य तथा पशु-पक्षी आते हैं। द्वीन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक जीव त्रस होते हैं। वे अंडज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदन, संमूर्छिम, उद्भिज्ज और औपपात्तिक-इस तरह आठ प्रकार के जीवों में कई श्रेणियाँ आ गई हैं। उत्पत्ति स्थान की दृष्टि से उन जीवों का विस्तार जानना आवश्यक है। इसलिये उनका विस्तृत विवेचन निम्न प्रकार से किया जा रहा है
१. अंडज-अंडों से उत्पन्न होने वाले मयूर, कबूतर, हंस आदि । ___२. पोतज-पोत अर्थात् चर्ममय थैली। पोत से उत्पन होने वाले पोतज. जैसे-हाथी, वल्गुली आदि।
३. जरायुज-जरायु का अर्थ है गर्भ-वेष्टन या वह झिल्ली, जो जन्म के समय शिशु को आवृत किये रहती है। इसे “जैर” भी कहते हैं। जरायु के साथ उत्पन्न होने वाले जैसे-गाय, भैंस आदि।
४. रसज-छाछ, दही आदि रस विकृत होने पर इनमें जो कृमि आदि उत्पन्न हो जाते हैं, वे रसज कहे जाते हैं।
५. संस्वेदन-पसीने से उत्पन्न होने वाले, जैसे-जूं, लीख आदि ।
६. सम्मछिम-बाहरी वातावरण के संयोग से उत्तपन्न होने वाले, जैसे-मक्खी, मच्छर, चींटी, भ्रमर आदि । - ७. उद्भिज्ज-भूमि को फोड़कर निकलने वाले, जैसे-टोड, पतंगे आदि ।
८. औपपातिक-"उपपात” का शाब्दक अर्थ है-सहसा घटने वाली घटना । आगम की दृष्टि से देवता शंया में, नारक कुम्भी में उत्पन्न होकर एक मुहूर्त के भीतर ही पूर्ण युवा बन जाते हैं, इसलिये वे औपपातिक कहलाते हैं । ५६
पशुओं में मृग, शूकर, चित्रक, मूषक, वारठ्ठाट (हाथी), वराहा५७, सिंह, श्वान ५८ कुत्ता, मार्जरी,५९ रीछ, गो, महिष, बैल, कुक्कुट'६० आदि पशुओं का उल्लेख मिलता
दण्ड-व्यवस्था
समाज में कई प्रकार के दोष व्याप्त थे। व्यक्ति विविध प्रकार के बलों का प्रयोग करते थे अर्थ के लोभ की प्रवृत्ति थी। इसलिये चोर या लुटेरे भी व्याप्त थे। इसलिये कई प्रकार की दण्ड व्यवस्था थी। आचारांग में आठ कार्य ऐसे हैं जिनके लिये दण्ड भी दिया जाता था। वृत्तिकार ने उनकी विस्तार से चर्चा की है दण्ड क्रिया में दण्ड समादान शब्द का प्रयोग हुआ है.६३
आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन
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