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________________ में द्राक्षा, कोल, बदर आम्लीक, पेय पदार्थों का उल्लेख किया है।९८ द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन के चतुर्थ उद्देशक में खीर, दही, नवनीत, घृत (गुड), तेल्ल (तेल), मद्य, मांस, जलेबी, गुड़ राब, पूएँ, शिखणी आदि पेय पदार्थों का उल्लेख किया है।९९ उक्त प्रत्येक शब्द की वृत्तिकार ने विस्तृत व्याख्या की है। जैसे-गूल्ल, अर्थात् जल से द्रवीकृत पेय पदार्थ गुड़ है ।१०० खाद्य___ जो खाया जाये वह पदार्थ खाद्य कहलाता है, जैसे-रोटी, मोदक, आदि । कुछ खाद्य पदार्थ इस प्रकार हैं-१. मूल-आलू, अदरक, लस्सन, हल्दी । २. कन्द-कमल की जड़, इसे जलज कन्द भी कहा जाता है, पलास कंद, वैदारिका कन्द, स्थलज कन्द आदि भी कन्द हैं, ३. स्कन्ध, ४. त्वचा, ५. शाखा, ६. प्रवाल, ७. पत्र, ८. पुष्प, ९. फल, १०. बीज। आचारांग वृत्ति में वृत्तिकार ने इसकी विस्तार से चर्चा की है।०१ शालूक (अपक्व) वैरालिक, सरसप्प, पीपली, मंथू. बूकनी, आमक्ख दूरक, साणु बीज, ईक्षु, मेरक, अङ्क करेलुक, अग्र बीज, मूल; खंद बीज, स्कन्ध वीज, पोरबीज, कागक, अङ्गारीक (मुाया हुआ), संमिश्र वेनताग्र, लसून, चोयक, आमडाक इत्यादिक खाद्य पदार्थों का उल्लेख किया गया है ।१०२ आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में मुंग, मोठ, चौले, तरबूज, ककड़ी, सीताफल, पपीता, नींबू, बेल, अनार, अनन्नास आदि आदि का उल्लेख करके खाद्य पदार्थों की विशेषताओं को गिनाया है । ०३ खाद्य-पदार्थ खाद्य अर्थात ऐसे पदार्थ जिसके सेवन करने से मुख शुद्धि हो । जैसे-इलायची, लौंग, सुपारी आदि । आचारांग वृत्तिकार ने वृत्ति के अन्तर्गत खाद्य पदार्थों की विशेष विवेचना नहीं की है। खाद्य पदार्थ का केवल उल्लेख मात्र है खाद्य योग्य पदार्थ में कर्पूर लवांगादि को ग्रहण किया है ।१०४ आहार कई प्रकार के थे और जातियाँ भी कई प्रकार की थीं। अनार्य-जाति के लोग रूखा-सूखा भोजन करते थे। उनका भोजन कोदों बेर-चूर्ण एवं कुलथ था। आचारांग वृत्ति में वृत्तिकार द्वारा वर्णित भोज्य पदार्थों का निम्न प्रकार से वर्णन किया है। मूंग और चना आदि की गीली दाल को पीस कर तेल में तल कर तैयार किये गये हींग और जीरे आदि से संस्कृत व्यंजन आदि से युक्त तक्र या छाछ आदि का वर्णन हुआ है। इसका अर्थ दहीबड़ा, रायता, या करम्ब भी किया जा सकता है ।१०५ इसमें आहार से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण वात यह भी प्रतिपादित की गई कि आहार तत्कालीन समाज में उष्ण रूप में करने की प्रथा थी। अधिक उष्ण भोजन होने पर लोग पंखे, पत्ते, ताल पत्र, शाखा, पक्षी के पंख, मोरपंख, कपड़ा, हाथ या मुँह आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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