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में आत्मा को जिस रूप से प्रस्तुत किया उसमें ज्ञान की प्रमुखता है। जीव के उपयोगों में ज्ञानोपयोग औद दर्शनोपयोग ये दो उपयोग आते हैं। उसी सन्दर्भ में ज्ञान की व्याख्या करते हुए यह कथन किया है कि ज्ञान जीव के स्व और पर विचार में भेद विज्ञान को उत्पन्न करने वाली है। ___ज्ञान प्रत्यक्ष और परोक्ष दो प्रमाण रूप भी है। सम्यकत्व के अध्ययन में दर्शन के साथ ज्ञान का वर्णन किया है। ज्ञान की विवेचना आचारांग सूत्र में कई रूपों में की गई है। वृत्तिकार ने उस पर सरलतम व्याख्या प्रस्तुत करते हुए ज्ञान को अधिक स्पष्ट किया है। ज्ञान और सम्यक्त्व सहभावी है। जहाँ सम्यक्त्व है, वहाँ ज्ञान है और जहाँ ज्ञान है वहाँ विरक्ति है; क्योंकि ज्ञान का फल विरति (चारित्र) कहा गया है। ज्ञान के होने से दर्शन सम्यक् दर्शन है और सम्यक् दर्शन होने से ज्ञान सुज्ञान, सम्यज्ञान, सम्यक् ज्ञान है। ज्ञान का वर्गीकरण कई दृष्टियों से किया जाता है परन्तु ज्ञान के वर्गीकरण से सम्बन्धित यह रेखाचित्र ही पर्याप्त है।
. इस तरह धर्म और दर्शन से सम्बन्धित विवेचन ज्ञान की सम्यक् व्याख्या करता है। आचारांग वृत्ति, में जो सैद्धान्तिक विवेचन है वह धर्म और दर्शन के रहस्य को प्रतिपादित करता है। छ: प्रकार के जीवों की रक्षा में जहाँ सिद्धान्त के स्वरूप पर आधारित करके उन्हें बचाया गया है वहीं दार्शनिक पक्ष ने प्रत्येक जीव के अस्तित्व को सिद्ध किया है। वृत्तिकार शीलंक आचारांग ने एक-एक शब्द को धर्म
और दर्शन की कसौटी पर कसकर संकेत कर दिया कि धर्म मानवीय मूल्यों की जितनी अधिक विवेचन करता है उससे कहीं अधिक प्राणीमात्र के मूल्यों की स्थापना में सहयोग देता है। अतः धर्म और दर्शन जीवन-मूल्य की स्थापना के एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं है। धर्म प्राण-तत्त्व है और दर्शन उस तत्त्व का व्याख्याकार है।
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आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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