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________________ सब जीवों को नहीं होती है। अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान, केवलज्ञान और जातिस्मरणज्ञान सन्मति या स्वमति के अन्तर्गत आते हैं। विशिष्ट ज्ञान का बोध और उनका ज्ञेय भी होता है। ज्ञेय तत्त्व के चार भेद किये गये हैं—५३ १. अवधिज्ञान, २. मनःपर्यवज्ञान, ३. केवलज्ञान और ४. जातिस्मरणज्ञान ___ वृत्तिकार ने मति और श्रुत इन दो ज्ञानों की कोई व्याख्या नहीं की है। अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान, केवलज्ञान और जातिस्मरण ज्ञान की व्याख्या इस प्रकार की १. अवधिज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता की अपेक्षा रखे बिना ही सभी द्रव्यों को जानने वाला ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है। अवधिज्ञान संख्यात या असंख्यात भंवों को जान लेता है। २. मन:पर्यवज्ञान . मन वाले प्राणियों के मन की पर्यायों को जानने वाला ज्ञान मनःपर्यायज्ञान कहलाता है। यह ज्ञान संयम की शुद्धि से उत्पन्न होता है। इस ज्ञान के द्वारा भी. संख्यात या असंख्यात भवों को जाना जा सकता है। ३. केवलज्ञान ____ लोक के रूपी-अरूपी सकल द्रव्यों की सकल पर्यायों को जानने वाला ज्ञान केवलज्ञान कहलाता है। इसके द्वारा अनन्त भवों का ज्ञान हो सकता है। ४. जातिस्मरणज्ञान मतिज्ञानावरण के विशिष्ट क्षयोपशम के कारण आत्मा में ऐसे संस्कार जागृत हो जाते हैं जिनके कारण पूर्व भव का स्मरण हो जाता है। यह स्मरण जातिस्मरणज्ञान कहलाता है। इस ज्ञान के द्वारा नियमतः संख्यात भव जाने जा सकते हैं।५५ आत्मा और मति का तादात्म्य सम्बन्ध अर्थात् आत्मा का स्वभाव ज्ञान रूप है। ज्ञान आत्मा का गुण है और ज्ञान गुण का गुणी आत्मा है। गुण और गुणी से तादात्म्य सम्बन्ध होता है। वैशेषिक दर्शन गुण और गुणी को भिन्न-भिन्न मान कर समवाय सम्बन्ध के द्वारा उनका सम्बन्ध होना मानते हैं। इसका निराकरण करने के लिये सह शब्द दिया गया है, जो यह सूचित करता है कि मतिज्ञान सदा आत्मा के साथ रहता है। अतः आत्मा के साथ हमेशा ज्ञान के रहने पर भी ज्ञानावरण कर्म के प्रबल आवरण के कारण विशिष्ट ज्ञान नहीं हो पाता है। वृत्तिकार ने स्वमति और सहसन्नति की विशेषता को समझाने के लिये एक दृष्टान्त प्रस्तुत किया है। आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन १७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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