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तप, तीन योग, भिक्षु प्रतिमा, समाचारीता आदि श्रमणों के धारण करने योग्य क्रियायें
हैं।
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श्रमण
वल्मज्ञ, मात्रज्ञ, क्षणज्ञ, विनज्ञ, समयज्ञ, अपरिग्रहज्ञ, अप्रतिज्ञ, कालज्ञ, क्षेत्रज्ञ, खेदज्ञ आदि के रूप में संयम की साधना करता हुआ विचरण करता है । " विमोक्ष अध्ययन में साधु की क्रियाओं का, साधु के चारित्र का, साधु की शुद्धता एवं अन्य कई क्रियाओं का उल्लेख है । साधक — श्रमण शिथिलता के दोषों से रहित समस्त कष्टों को सहन करता हुआ समस्त क्रियाओं को करता है । वृत्तिकार ने अध्ययन की वृत्ति, में यह कथन किया है कि श्रमण रागादि से रहित क्षुधा - पिपासा आदि परिषहों से मुक्त प्राणी के प्रति अनुकम्पा करता हुआ संयम के अनुष्ठान में प्रवृत्त होता है । * २
श्रमण के उपकरण -
१. पात्र, २. पात्र बन्धक, ३. पात्र स्थापन, ४. पात्र के शरीका (पुंजनी), ५. पटल, ६ . रजस्त्राण, ७. गोच्छक ।
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निर्ग्रन्थों के अचेलकता - १. अल्पप्रतिलेखन, २. वेश्वसिक रूप, ३ . तप की प्राप्ति, ४. लाभ प्रशस्त, ५. विपुल इन्द्रिय निग्रह । ४ अभिग्रहधारी श्रमण के कल्प ५.
१. स्थविर - कल्पी, २ . जिन - कल्पी ।
परिहार विशुद्धि चारित्र वाले श्रमणों की प्रतिमाएँ ६
१. पहली प्रतिमा में भिक्षु साधक एक मास तक एक दत्ति (दाता) आहार ले और एक दत्ति पानी ले ।
२. दूसरी प्रतिमा में दो मास तक दो दत्ति आहार और दो दत्ति पानी को ग्रहण करे, अधिक नहीं ।
ले ।
३. तीसरी प्रतिमा में तीन मास तक तीन दत्ति आहार और तीन दत्ति पानी
ग्रहण करे ।
४. चौथी प्रतिमा में चार मास तक चार दत्ति आहार और चार दत्ति ही पानी
५. पाँचवीं प्रतिमा में पाँच माह तक पाँच दत्ति आहार और पाँच दत्ति पानी पर निर्वाह करे
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६. छठी प्रतिमा में छः मास तक छह दत्ति आहार और छः दत्ति पानी ग्रहण
करे ।
७. सातवीं प्रतिमा में सात मास तक सात दत्ति आहार और सात दत्ति पानी पर निर्वाह करे ।
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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