________________
प्रकार उदयन राजा को मारने के लिये एक नाई ने कपटपूर्वक साधुत्व अधिकार किया था। ऐसा कपटपूर्ण संयम और अध्यवसायों की विकृति के कारण संवर के स्थान भी आस्रव के स्थान हो जाते हैं।
आस्रव, संवर और निर्जरा का मुख्य आधार चित्त वृत्ति, पर—मानसिक परिणामों की धारा पर निर्भर है । कर्मों के आस्रव के कारण और निर्जरा के कारण जानकर संसार के कर्म बन्धनों से मुक्त होने का उपाय करना चाहिए । “
१८
तप से निर्जरा होती है, इसलिये दर्शन, ज्ञान और चारित्र के साथ तप में प्रवृत्ति, करना चाहिए ।
निर्जरा के भेद १६
द्रव्य निर्जरा
बाह्य तप
१६४
निर्जरा
निर्जरा के कारण
Jain Education International
अनशन ऊनोदरी वृत्तिपरिसंख्यान रस परित्याग कायक्लेश प्रतिसंलीनता |
प्रायश्चित्त विनय वैयावृत्य
"
भाव निर्जरा
आभ्तन्तर तप
मोक्ष -
I
षट्काय के जीवों के वध में कर्म बन्धन और वध से निवृत्ति, करने से मोक्ष ' होता है । वृत्तिकार ने कहा हैं कि बाह्य संसार और आभ्यन्तर संसार पर विजय प्राप्त करना लोक विजय है । कर्म बन्ध और कर्म क्षय के कारण को मोक्ष कहा जाता है। अर्थात् जहाँ समस्त कर्मों का अभाव हो जाता है, वहाँ मोक्ष होता है । मोक्ष अर्थात् मुक्त अवस्था । संसार के जन्म-मरण के अभाव का नाम मोक्ष है । वृत्तिकार ने लोक विजय अध्ययन के प्रथम उद्देशक में मोक्ष की चर्चा की है। उन्होंने इस अध्ययन में यह कथन किया है कि ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप मोक्ष है। आत्मा के हित का नाम मोक्ष है। चारित्र का अनुष्ठान मोक्ष है या अपर्यवसान का नाम मोक्ष है ।
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
स्वाध्याय व्युत्सर्ग ध्यान
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org