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इसके अतिरिक्त अनुमान के अन्य कई भेदों का उल्लेख मिलता है जैसे(१) पूर्ववत् (२) शेषवत्, (३) कार्येण (कार्य), (४) कारनेण (कारण), (५) गुर्णेण ( गुण से), (६) अवयवेण (अवयव से), (७) आश्रयेण (आश्रय से) ।
आगम साहित्य में अनुमान एवं प्रमाण आदि का विशद विवेचन मिलता है 1 निक्षेप दृष्टि से द्रव्य प्रमाण, क्षेत्र प्रमाण, काल प्रमाण और भाव प्रमाण का उल्लेख प्राप्त होता है । अनुमान ही द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से प्रतिपादित किया जाता है 1
नय विवेचन
नामादि का न्यसन् अर्थात् नयस्त, प्रमाण और नय के माध्यम से किया जाता है । प्रमाण, नय और निक्षेप – इन तीन तत्त्वों की व्याख्या करने वाले प्रमुख कारण हैं। यही कारण है कि उमास्वाति ने तत्त्वार्थ सूत्र में इन्हें उपाय तत्त्व के रूप में ग्रहण किया है। आचार्य सिद्धसेन एवं अन्य दार्शनिकों ने भी इन प्रमुख बिन्दुओं को आधार बनाकर वस्तु तत्त्व का विवेचन किया है ।
शीलांकाचार्य ने आचारांग सूत्र की वृत्ति के प्रारम्भिक विवेचन में अनुयोग द्वार को मूल केन्द्रबिन्दु बनाकर दार्शनिक युग की विचारधारा के अनुरूप प्रमाण, नय और निक्षेप के आधार पर वस्तु तत्त्व का विवेचन करने का विधान बतलाया है 1 उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय मूल रूप से अनुयोग के प्रमख चार द्वारं हैं । १०२ आगम युग का जैन दर्शन का विवेचन आगमों को प्रमाण मानकर पण्डित दलसुख मालवणिया ने नय निरूपण में उक्त कथन प्रस्तुत किया है !
नामादि का व्यसन तीन प्रकार से होता है । औद्य निस्पन्न, नाम निस्पन्न और सूत्रालापक निस्पन्न, इन न्यास के अतिरिक्त निक्षेप अनुगम और नय अनुयोग द्वार के मूल स्थान हैं। प्रमाण की दृष्टि से ये पृथक् नहीं हैं अपितु उपक्रम के ही भेद हैं ।
नय का स्वरूप
वृत्तिकार ने व्युत्पत्ति के माध्यम से ऩय का स्वरूप इस तरह प्रतिपादित किया है कि जो अनन्त धर्मों के अध्यवसाय से वस्तु के एक-एक धर्म को साथ लेकर चलता है या उसका विश्लेषण करता है, ऐसा ज्ञान विशेष नय है । १०४ ज्ञान विशेष से वृत्तिकार का अभिप्राय यह है कि जो कुछ भी कथन किया जाता है वह वस्तु के अनेक धर्मों की वास्तविकता को लेकर ही प्रतिपादित किया जाता है; क्योंकि नय सूत्रों के अवयवों का सापेक्ष दृष्टि से निरूपण करता है । इसमें उद्देश्य, निर्देश, निर्गम, क्षेत्र, काल और पुरुष की प्रधानता होती है । कारण प्रत्ययों से युक्त नय अनुगम को प्राप्त होता है। अनुगम में सूत्र का अनुगम, सूत्र का उच्चारण आदि होता है । अनुगम, निक्षेप निर्युक्ति रूप है। उपोद्घात निर्युक्ति रूप है, और सूत्र स्पर्शिक निर्युक्ति रूप भी है। नय सामान्य और विशेष की अवस्था को भी लिये हुए होता है । १०५
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आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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