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आवश्यकनियुक्तिः
कैलाससम्मेदोर्जय-न्तपावाचम्पानगरादिनिर्वाणक्षेत्राणां समवसृतिक्षेत्राणां च स्तवनं क्षेत्रस्तवः । स्वर्गा-वतरणजन्मनिष्क्रमणकेवलोत्पत्तिनिर्वाणकालानां स्तवनं कालस्तव: । केवलज्ञान-केवलदर्शनादिगुणानां स्तवनं भावस्तवः । ___अथवा जातिद्रव्यगुणक्रियानिरपेक्षं संज्ञाकर्मं चतुर्विंशतिमात्रं नामस्तवः । चतुर्विंशतितीर्थंकराणां साकृत्यनाकृतिवस्तुनि गुणानारोप्य स्तवनं स्थापनास्तवः । द्रव्यस्तवो द्विविधः आगमनोआगमभेदेन । चतुर्विंशतिस्तवव्यावर्णनप्राभृतज्ञायकशरीरभाविजीवतद्व्यतिरिक्तभेदेन नोआगमद्रव्यस्तवस्रिविधः, पूर्ववत्सर्वमन्यत् । ।
कैलाशगिरि, सम्मेदगिरि, ऊर्जयन्तगिरि, पावापुरी, चम्पापुरी आदि निर्वाण क्षेत्रों का और समवशरण क्षेत्रों का स्तवन करना क्षेत्र-स्तव है । स्वर्गावतरण, जन्म, निष्क्रमण, केवलोत्पत्ति और निर्वाणकल्याणक के काल का स्तवन करना अर्थात् उन-उन कल्याणकों के दिन भक्तिपाठ आदि करना या उन-उन तिथियों की स्तुति करना कालस्तव है तथा केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि गुणों का स्तवन करना भावस्तव है ।
अथवा जाति, द्रव्य, गुण और क्रिया से निरपेक्ष चतुर्विंशति. मात्र का नामकरण है वह नामस्तव है । चौबीस तीर्थंकरों की आकारवान अथवा अनाकारवान अर्थात् तदाकार अथवा अतदाकार वस्तु (मूर्ति) में गुणों का आरोपण करके स्तवन करना स्थापनास्तव है। , - आगम और नो-आगम के भेद से द्रव्यस्तव आगम, नो-आगम के भेद से दो प्रकार का है । जो चौबीस तीर्थंकरों के स्तवन का वर्णन करने वाले प्राभृत का ज्ञाता है किन्तु उसमें उपयुक्त नहीं है ऐसा आत्मा आगम-द्रव्यस्तव है । नोआगम द्रव्यस्तव के तीन भेद हैं-प्राभृत के (ज्ञाता) ज्ञायक का १-शरीर, २-भावी जीव और ३-तद्व्यतिरिक्त । चौबीस तीर्थंकरों के स्तव का वर्णन करने वाले प्राभृत के ज्ञाता का शरीर ज्ञायकशरीर है । इसके भी भूत, भविष्यत, वर्तमान की अपेक्षा तीन भेद हो जाते हैं । बाकी सब पूर्ववत् समझ लेना चाहिए ।
चौबीस तीर्थंकरों से सहित क्षेत्र का स्तवन करना क्षेत्रस्तव है । चौबीस तीर्थंकरों से सहित काल अथवा गर्भ, जन्म आदि का जो काल है उनका स्तवन करना काल-स्तब है।
भावस्तव भी आगम, नो-आगम की अपेक्षा दो प्रकार का है । चौबीस तीर्थंकरों के स्तवन का वर्णन करने वाले प्राभृत के जो ज्ञाता हैं और उसमें उपयोग भी जिनका लगा हुआ है उन्हें आगमभाव चतुर्विंशति-स्तव कहते हैं ।
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क तज्ञश० ।
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